श्राद्ध और पितरों से जुड़ी जरूरी बातें:सुबह 11.36 से 12.24 के बीच श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है संतुष्टी, पितरों की दिशा होती है दक्षिण
अथर्ववेद में कहा गया है कि जब अश्विन महीने के दौरान सूर्य कन्या राशि में हो तब पितरों के लिए श्राद्ध किया जाना चाहिए। इसलिए पितरों की पूजा के लिए आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष को बहुत शुभ माना गया है। शास्त्रों में दक्षिण को पितरों की दिशा माना गया है। वहीं चंद्र लोक में पितरों वास माना जाता है। ज्योतिष के मुताबिक अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में चंद्रमा पृथ्वी के करीब आ जाता है। इसलिए इन दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण का विधान है।
श्राद्ध के लिए दिन का आठवां मुहूर्त शुभ
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ.गणेश मिश्र के मुताबिक, पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध शास्त्रों में बताए उचित वक्त पर करने से ही फलदायी होते हैं। इसलिए दिन के आठवें मुहूर्त में श्राद्ध करना चाहिए। इस मुहूर्त को कुतुप काल कहते हैं। जो तकरीबन सुबह 11.36 से 12.24 के बीच होता है। मान्यता है कि इस वक्त पितरों का मुख पश्चिम की ओर हो जाता है। इससे पितर अपने वंशजों द्वारा श्रद्धा से भोग लगाए कव्य बिना किसी कठिनाई के ले लेते हैं।
तर्पण और श्राद्ध के लिए कब है श्रेष्ठ समय और पितरों से जुड़ी जरूरी बातें
1. पितृ शांति के लिए तर्पण का श्रेष्ठ समय संगवकाल यानी सुबह 11.36 से 12.24 तक माना जाता है। इस दौरान जल से किए तर्पण से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
2. पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए।
3. पुराणों का कहना है कि पितरों की भक्ति से पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है।
4. सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है।
5. तर्पण करते समय पिता, दादा और परदादा आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए।
6. हर पिंड के दान के वक्त एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा मंत्र बोलना चाहिए।
7. अग्नि में हवन करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है, उसे ब्रह्म राक्षस भी दूषित नहीं करते। श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं।
8. ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप- ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं।