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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/twheeenr/public_html/wp-includes/functions.php on line 6114The post अपने क्षेत्र की अस्मिता के लिए दिल्ली पहुंचे पांगी जनजाति के लोग appeared first on The News Express.
]]>नई दिल्ली। पांगी विधानसभा क्षेत्र को फिर से बहाल करने और चेहनी पास सुरंग के निर्माण की मांग को लेकर हिमाचल प्रदेश में चंबा के पांगी से पंगवाल एकता मंच के लोग देश की राजधानी नई दिल्ली पहुंचे हैं। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, दिल्ली में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए गैर सरकारी संगठन पंगवाल एकता मंच के अध्यक्ष त्रिलोक ठाकुर ने कहा कि उनकी ये दो प्रमुख मांगें हैं। उन्होंने कहा कि उनका संगठन 25 हजार पंगवाल जनजाति का प्रतिनिधत्व करता है।
पांगी, हिमाचल प्रदेश का सबसे दुर्गम और हिमाच्छादित जनजातीय बहुल क्षेत्र है। पंगवाल जनजाति, देश के संविधान की 5वीं अनुसूची में एक स्वतन्त्र जनजाति है। इसकी अपनी अलग संस्कृति, भाषा, बोली, भूगोल और इतिहास है। पांगी को फिर से विधानसभा क्षेत्र बनाने की मांग को लेकर पंगवाल जनजाति का एक प्रतिनिधिमंडल, तीन दिनों की कठिन यात्रा करके 10 दिसम्बर, 2023 को दिल्ली पहुंचा। लाहौल-कुल्लू-मण्डी, बिलासपुर, पंजाब, हरियाणा से गुजरते हुए इन लोगों ने करीब 1000 किमी की यात्रा की है।
त्रिलोक ठाकुर ने कहा कि पांगी को फिर से विधानसभा क्षेत्र घोषित करने की मांग को लेकर प्रतिनिमंडल ने मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत निर्वाचन आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकार के अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें ज्ञापन सौंपे। उन्होंने बताया कि 1952 में पहले परिसीमन के दौरान पांगी को विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया था। पंगवाल जनजातीय समुदाय से ताल्लुक रखने वाले (स्व.) दौलत राम ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया था। हालांकि, साल 1962 के परिसीमन में पांगी विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया और 1966 में पूरे पांगी क्षेत्र को भरमौर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा बना दिया गया।
इसके बाद, 1972 और 2002 में भी परिसीमन हुए, लेकिन पांगी विधानसभा क्षेत्र को फिर से बहाल नहीं किया गया। साल 1967 से लेकर आज तक पंगवाल जनजाति समुदाय को हिमाचल प्रदेश विधानसभा और सरकार में कोई भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। पिछले 60 वर्षों से 25 हजार की आबादी का पंगवाल जनजाति समुदाय और 1600 वर्ग किलोमीटर में फैला क्षेत्र, गद्दी जनजाति समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के अधीन है। हिमाचल प्रदेश में चार प्रमुख जनजातियां और जनजातीय क्षेत्र हैं: (1) किन्नौरा, जिला- किन्नौर (2) लहुला, जिला- लाहौल स्पीति (3)पंगवाल, जिला- चंबा (4) गद्दी, जिला- चंबा।
उन्होंने कहा कि हर समुदाय की अपनी अलग संस्कृति, भूगोल, इतिहास और बोली है और सभी एक-दूसरे के प्रभाव से स्वतंत्र हैं। फिर पंगवाल जनजाति के ऊपर गद्दी जनजाति का प्रभुत्व क्यों है? उन्होंने यह भी कहा कि भौगोलिक दृष्टि से पांगी और भरमौर विपरीत दिशाओं में है। पांगी हिमाचल प्रदेश के उत्तर छोर में है, तो भरमौर दक्षिण छोर पर है और बीच में साच जोत (Sach Pass) और विशाल पीर पंजाल पर्वतमाला क्षेत्र आता है। पंगवाल जनजाति एक स्वतंत्र जनजाति है जिसका अपना अलग इतिहास, क्षेत्र, संस्कृति, भाषा, बोली और पहचान है। इसका गद्दी जनजाति से कोई मेल नहीं है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की दूरदर्शी सोच और गतिशील नेतृत्व में हाल ही में भारत की संसद ने एक ऐतिहासिक नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 पारित किया, जिसके अन्तर्गत सरकार का यह आधिकारिक बयान संसद में आया कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद भारत की जनगणना और उसके बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अब यह स्पष्ट है कि 2026 तक परिसीमन पर लगी रोक हटेगी और एक बार फिर विधानसभा क्षेत्रों की समीक्षा होगी, जिसके लिए परिसीमन आयोग बनेगा। इसी उम्मीद के साथ पंगवाल एकता मंच के लोग दिल्ली पहुंचे हैं कि परिसीमन की नई प्रक्रिया में पांगी के विधानसभा क्षेत्र का पुरान दर्जा बहाल हो जाए।
चैहणी पास सुरंग निर्माण की मांग
उन्होंने कहा कि उनका दूसरा मुद्दा चैहणी पास सुरंग निर्माण को लेकर है। यह प्रस्तावित परियोजना सैद्धांतिक रूप से द्रमण चुवारी – जोत – चंबा – तिस्सा – किल्लार (पांगी) के बीच स्थित चैहणी जोत के नीचे 9 से 10 किलोमीटर सुरंग निर्माण से जुड़ी है। ये पंगवाल समुदाय की वर्ष 1970-71 से लगातार उठाई गई मांग है, जिसे अभी तक अनसुना किया गया है।
उन्होंने कहा कि साच पास दर्रा हर साल 15 अक्टूबर को भारी हिमपात की वजह से बंद कर दिया जाता है और अगले साल 15 जून से पहले यातायात के लिए खुलता नहीं है। मतलब पंगवाल जनजाति के 25 हजार लोग, 8 महीने तक बर्फ की कैद में रहने के लिए मजबूर होते हैं। यदि यह सुरंग बनती है, तो 25 हजार जनजाति को भी शेष विश्व और अपने जिला मुख्यालय चंबा से 12 महीनों निर्बाध यातायात सुविधा का लाभ मिल सकेगा।
उन्होंने कहा कि यह मार्ग सुरक्षा की दृष्टि से भी एक और वैकल्पिक मार्ग साबित होगा, क्योंकि पठानकोट से चम्बा – तीसा – चैहनी पास टनल होते हुए किलाइ पहुंचकर यह मार्ग बीआरओ के संसारीनाला – किलाड़- उदयपुर थिरोट – तांदी को छूता है। इससे दोनों तरफ, किश्तवाड़ – डोडा- बटोत-श्रीनगर और लाहोल – लद्दाख जल्दी पहुंचा जा सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ-साथ, भूतल परिवहन और राष्ट्रीय उच्च मार्ग मंत्री से इस महत्वपूर्ण परियोजना को साकार करने की अपील की।
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