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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/twheeenr/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121The post महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में द्विदिवसीयअखिल भारतीय वेद विज्ञान सम्मेलन 2023 का आयोजन appeared first on The News Express.
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महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में द्विदिवसीयअखिल भारतीय वेद विज्ञान सम्मेलन 2023 का आयोजन सी सुब्रमण्यम हॉल, पूसा संस्थान; नई दिल्ली में किया जा रहा है। प्रस्तुत कार्यक्रम का आयोजन विश्ववेद परिषद्, परमार्थ निकेतन, कृषि एवं किसान कल्याण मन्त्रालय भारत सरकार, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, पतंजलि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में किया जा रहा है।
सम्मेलन में कार्यक्रमके प्रारम्भ होने से पूर्व भजन संकीर्तन से किया गया। सम्मेलन का प्रारम्भ राष्ट्रगान से किया गया है। तदुपरांत जेएनयू की छात्राओं द्वारा वैदिक मंगलाचरण किया गया।
दीप प्रज्वलन के पश्चात् स्वामी चिदानंद एवं विविध संस्कृत विभागाध्यक्षों के द्वारा लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम विरला जी का स्वागत किया गया। कार्यक्रम के सूत्रधार प्रो धर्मेन्द्र शास्त्री जी के द्वारा विशिष्ट अतिथि डॉ सत्यपाल सिंह (सांसद एवं कुलाधिपति, गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार)को उद्बोधन हेतु आमंत्रित किया। डॉ सत्यपाल ने कहा कि वेद का एक-एक अक्षर विज्ञान से भरा है। आइन्स्टाइन को उद्धृत करते हुए विज्ञान की कसोटियों की चर्चा करते हुए वेदों में सद्भावना का प्रकाश है। प्राचीन विमान कला पर लिखी पुस्तक का उद्धरण दिया एवं वर्तमान सरकार वेदों को पुनः जागृत करने का कार्य कर रही है यह कहते हुए अपनी वाणी को विराम दिया।
सारस्वत अतिथि श्री कैलाश चौधरी (केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री) उद्बोधन में कहा कि देश एवं संस्कृति सभी का अस्तित्व वेदों से है। सत्र के विषय ‘प्राकृतिक कृषि एवं वैदिक चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह अत्यन्त हर्ष का विषय है जो हम वापस वेदों की तरफ आ रहें है तथा कृषि के क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की तरफ आ रहे है। सम्मेलन में श्रीअन्न(millets)एवंवसुधैव कुटुंबकम् की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए पर्यावरण एवं जल संरक्षण आदि विषय पर भी वैदिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया। पाश्चात्य संस्कृति हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है एवं हमारी भारतीय विद्या एवं संस्कृति अत्यन्त प्राचीन एवं वैज्ञानिक है। वर्तमान समय में वेदों अर्थात् संस्कृति में वर्णित श्री अन्न, वसुधैव कुटुंबकम् इत्यादि तत्त्वों को व्यावहारिक रूप से आगे ले जाएगे।
सम्मेलन में उद्बोधन क्रम में उद्देश्य एवं प्रस्तावना का बीज रोपण करने हेतु स्वामी चिदानंद सरस्वती ने विद्वतगणों की सभा को संबोधित करते हुए उपनिषद् वाक्य से अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के जीवन को यज्ञ की संज्ञा देते हुए उनकी तपस्या एवं कठिन परिश्रम से भारत देश महाभारत नहीं महान भारत की ओर अग्रसर हो रहा है। आज समस्त विश्व भारत को भारतीय दृष्टि से देखना प्रारंभ कर रहा है। वेद विज्ञान सम्मेलन को संसद की संज्ञा देते हुए लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला, केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर एवं सभी सहयोगियों को संबोधित करते हुए उनके सहयोग की सराहना की। वेद अपौरुषेय है अतः प्रस्तुत सम्मेलन का आयोजन प्रभु का कार्य है। वैदिक से वैश्विक बनना है अर्थात् वेदभाषा जन-जन की भाषा बने। अमेरिका में अपने Wikipedia के अनुभव को साझा करते हुए Vedicpediaके प्रारंभ का कार्य सभा के समक्ष रखा। वेद को न केवल जानना या मानना है अपितु वेदों को जीना है। विज्ञान एवं आध्यात्मिकता को साथ-साथ रखकर अग्रसर होना है। युवाओं को संबोधित करते हुए वृक्ष एवं जल के साथ-साथ रहने पर हरियाली का दृष्टांत देते हुए संस्कृति के साथ-साथ संस्कारी होने से जीवन में हरियाली होगी।
अध्यक्षीय भाषण श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि सभी की समस्याएँ समान किन्तु चिन्तन अलग-अलग हैं। गूढ़ विश्लेषण करें तो भारत एकमात्र देश है जिसके चिन्तन में स्वयं के साथ विश्व कल्याण की भावना निहित हैं। उन्होंने कहा की वसुधैव कुटुम्बम् का भाव हमारे व्यक्तित्व से झलकता है, जिसका साक्षात् उदाहरण भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी हैं। वेदों के अनुसंधान में सहस्त्र वर्ष लग जाएंगे किन्तु सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना शायद असंभव सा लगता हैं। ऐसा कोई विषय नहीं जो वेदों में पूर्वजों ने न चिन्तन किया हो। वेदों के अध्ययन से यह जीवन और परलोकीय जीवन भी सार्थक हो जाता हैं। भारत के अमृतकाल(२०२२-२०४७) यह कालखण्ड भारत के सांस्कृतिक उत्थान का काल हैं। वेदों में सभी प्रकार का विज्ञान यथा गणितविज्ञान, रसायन विज्ञान इत्यादि हैं। मै समझता हूँ कि आज विश्व में जो चिन्तन हो रहा है, आज का यह महासम्मेलन उसी क्रम में एक चरण के समान हैं।
मुख्य अतिथि उद्बोधन : श्री ओम बिरला जी
उन्होंने स्वामी चिदानंद जी महाराज, स्वामी सरस्वती जी, आचार्य प्रेमपाल जी एवं उपस्थित सभी विद्वतगणों को संबोधित करते हुए विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों को प्रणाम करते हुए वैदिक ऋषियों के ज्ञान एवं वेदों की रचना पर प्रकाश डाला। इनके अनुसार वैदिक ऋषियों का ज्ञान आध्यात्मिक एवं अद्भुत रहा है। वैज्ञानिकों ने माना की आज जो कुछ भी है वेद के माध्यम से है। वेद तात्त्विक, व्यावहारिक एवं यथार्थ भी है। जीवन की हर आवश्यकताओं को समेटने का काम वेद में है। वेद विज्ञान पर अनुसंधान अनवरत चलता रहेगा। डॉ० सत्यपाल जी के मत को सही ठहराते हुए कहा की वेद अनवरत है, वेद एवं विज्ञान के विषय में जितनी अलग-अलग व्याख्या की गई है किन्तु सभी का तात्पर्य वेद अपौरुष्य हैं तथा आत्मा जीवंत है है। वेद ने हर पीढ़ी को कुछ न कुछ दिया है। चारों वेदों एवं उनके व्याख्याकारों का उद्धरण देते हुए अनवरत चलने वाली इस यात्रा की सराहना की। वेद से सम्बन्धित विज्ञान का सार उपनिषदों से प्राप्त कर सकते है।उन्होंने वेद के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि आज का आधुनिक विज्ञान एवं मानवीय जीवन वेद पर आधारित हैं। वेदों ने समस्त विश्व को आध्यात्मिक चिन्तन दिया हैं।
सत्रांत: पतंजलि विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा अत्यन्त मन्त्रमुग्ध करने वाली योग प्रस्तुति की गई तदुपरांत विविध विद्वानों द्वारा सम्मेलन विषय से संबंधित अपने-अपने व्यक्तव्य सभा के समक्ष रखें तथा राष्ट्रगान से सम्मेलन के प्रथम सत्र का समापन हुआ। इस सम्पूर्ण वैदिक सम्मेलन के संयोजक एवं मञ्च सञ्चालन प्रो० धमेन्द्र शास्त्री एवं डॉ० देवेश प्रकाश के द्वारा सम्पन्न किया गया।