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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/twheeenr/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121The post शराबबंदी की योजनाओं को सही दिशा देने की जरूरत appeared first on The News Express.
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हाल ही में बिहार में एक माह के अंदर दूसरी बार जहरीली शराब से हुई मौतों ने आमजन के साथ ही सरकार के माथे पर भी बल ला दिया है। शराबबंदी के बावजूद लगातार हो रही मौतें सुशासन कुमार के लिए वाकई दुखती रग है। इस घटना ने पुन: स्मारित करा दिया कि तमाम कोशिशों के बावजूद शराबबंदी का निर्णय क्या इस कदर जटिल हो गया है कि इसके सुलझने के आसार दूर तलक नहीं दिख रहे। गत दिसम्बर माह में छपरा में करीब 75 लोगों की मौत का आरोप लगाते हुए भाजपा ने सदन से सड़क तक जबरदस्त हंगामा किया। इस सप्ताह सिवान में करीब दर्जनभर लोगों की मौत और कइयों की आंखों की रोशनी चली गई। स्वाभाविक है कि दुरूह जिंदगी के हर पल, न भरने वाले जख्म को कुरेदते रहेंगे।
भारत में अवैध शराब से मौत मामले में बिहार एकलौता राज्य नहीं बल्कि ये मौतें उन प्रदेशों में भी होती हैं, जहां शराब पर प्रतिबंध नहीं है। वर्तमान में बिहार, गुजरात, मिजोरम, नागालैंड एवं लक्षद्वीप के केंद्र शासित प्रदेशों में शराब निषेध है। गुजरात में शराबबंदी के बावजूद सिविल अस्पताल से हेल्थ के आधार पर या दूसरे राज्यों के प्रवासी (जिन राज्यों में शराब प्रतिबंधित न हों) लोगों को परमिट के द्वारा शराब दी जाती हैं। भारत दुनिया में तेजी से बढ़ते शराब बाजारों में से एक है। यहां प्रति व्यक्ति औसतन 5.6 लीटर शराब का वार्षिक खपत है। भारतीय शराब का बाजार 8.8 प्रतिशत के सीएजीआर (कम्पाउन्ड एनिवल ग्रोथ रेट) से बढ़ रहा है। यहां 16.8 बिलियन लीटर की खपत है, जबकि व्हिस्की का सबसे बड़ा तथा आईएमएफएल (इंडियन मेड फॉरेन लिकर) बाजार का 60 प्रतिशत हिस्सा है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक पिछले 5 सालों में भारत में जहरीली शराब से 6172 लोगों की मौतें हुई। इनमें सर्वाधिक मौत की कहर मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं हरियाणा आदि राज्यों में बरपीं। देश में वषर्वार 2016 में 1050, 2017 में 1510, 2018 में 1365, 2020 में 947 और 2021 में 782 लोगों की जानें गई। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी जहरीली शराब से 3 सालों में करीब 260 लोगों की जानें गई हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि जिन प्रदेशों में शराब पर प्रतिबंध नहीं है, वहां शराब के नशे में ड्राइविंग करते हुए मौतों के आंकड़े काफी दुखद हैं। रिपोर्ट बताती है कि चाहे शराब प्रतिबंधित प्रदेश हों या प्रतिबंध मुक्त, हर जगह जहरीली शराब से मौत की घटनाएं घटी हैं। बिहार में राज्य के मुखिया नीतीश कुमार 2016 से शराबबंदी को लेकर देश स्तर पर चर्चा में बने हुए हैं। क्योंकि इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ चुके हैं।
विकास के प्रति संवेदनशीलता दर्शाने के बावजूद वे उत्पाद विभाग से प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रुपये के राजस्व से हाथ धो चुके हैं। इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वे शराबबंदी की सफलता के लिए विभाग को साधन संपन्न कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। विभाग को उत्पाद कर्मी, वाहन, हथियार, ड्रोन, डॉग-स्क्वायड और सीक्रेट फंड दिल खोलकर दे रहे हैं, फिर भी शराब पीने, पिलाने, बेचने और बनाने पर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है? लिहाजा, यह सवाल तो समीचीन है कि आखिर कमी कहां रह गई है? राज्य में पिछले एक साल के दरमियान 1,55,868 लोगों को शराबबंदी कानून के तहत सजा सुनाई गई। इनमें 1,51,591 शराबियों ने दो सौ से पांच हजार रु पये तक का जुर्माना भरा जबकि 3622 अभियुक्तों को एक माह की सजा हुई। सवाल है कि करीब डेढ़ लाख अवैध शराब पीने, बनाने और बेचने वालों की गिरफ्तारी के लिए सघन छापेमारी, घटनास्थल से हाजत और न्यायालय में पहुंचाने, उन्हें रखने और खिलाने तथा जमानत या जेल भेजने तक की लंबी प्रक्रिया में जो समय और साधन लगे, उसकी भरपाई क्या आदर्श बोल और नैतिक संतुष्टि से संभव है?
उत्पाद विभाग के साथ पुलिस, न्यायालय और जेल के कीमती वक्त का भी आकलन करना होगा, क्योंकि अदालतों में मुकदमों की अंबार लगा है। सभी जेलों में क्षमता से कई गुना ज्यादा बंदी पड़े हैं। दाने-दाने को मोहताज गरीब परिवार के शराबी सदस्यों के लिए पांच हजार रुपये जुर्माने के साथ अदालती खर्च काफी कष्टदायी हो जाता है। ऐसे में सरकार को गरीब परिवारों के बीच रोजगार एवं प्रशिक्षण की वैकल्पिक व्यवस्था देकर उन्हें शराब बनाने और बेचने के धंधों से मोड़ना होगा।
शराबखोरी के विरुद्ध सघन जागरूकता के साथ धंधेबाजों की कमर तोड़ने के लिए कड़ी निगहबानी रखनी होगी। जिस जीविका की राज्य स्तर पर तारीफ की जा रही है, उसे महादलित टोलों में भी अपनी पैठ बनानी होगी। बैंक लोन लेने, फोटो खिंचाने और सैकड़ों में एक संगठन की क्रियाकलापों को आधार बनाकर बार-बार अपनी पीठ थपथपवाने से बाज आना होगा। राज्य के हजारों महादलित टोले अभी इनकी सक्रियता से अनिभज्ञ हैं। यानी सरकार की योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतारने से कुछ हद तक शर्मनाक वारदात पर रोक लगेगी।