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]]>सरस मेला : 25 वर्षों का शानदार सफ़र और गौरवशाली उपलब्धियाँ
वर्ष 1999 में मई महीने की एक अलसाईं सी दोपहर । जब ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार और कपार्ट के वरिष्ठ अधिकारियों ने ग्रामीण उत्पादों की मार्केटिंग की संभावनाओं पर एक बैठक की । बैठक में मुख्य मुद्दा ग्रामीण उत्पादों के लिए एक विस्तृत बाज़ार की संभावना की तलाश करना था । लंबी चर्चा के बाद यह फ़ैसला हुआ कि ग्राम श्री मेलों की तर्ज़ पर सरस मेले का आयोजन देश की राजधानी दिल्ली में किया जाए । ग़ौरतलब है कि इससे पूर्व ग्रामीण विकास मंत्रालय का स्वायत्तशासी संस्थान कपार्ट देश भर ग्राम श्री मेलों का आयोजन करता था । कपार्ट में 1989 में ही मार्केटिंग डिविज़न की स्थापना की जा चुकी थी । 1999 के अक्टूबर माह में दिल्ली के विज्ञान भवन में पहला सरस आयोजित हुआ । जिसमें विशेषकर क़रीब 15 राज्यों के ग़ैर सरकारी संगठनों से जुड़े हस्तशिल्प कलाकारों ने भाग लिया । इस दौरान दिल्ली के बाशिंदों को ग्रामीण उत्पादों के हस्त शिल्पियों से सीधे रूबरू होने और ग्रामीण उत्पादों को क़रीब से जानने का मौक़ा मिला । यहीं से पहले सरस की नींव पड़ी । बाद में इसी वर्ष प्रगति मैदान में सरस इवेंट का आयोजन किया गया
जिसके परिणाम सकारात्मक रहे ।यधपि हरियाणा पर्यटन विभाग द्वारा भी सूरजकुण्ड मेले का आयोजन किया जा रहा था लेकिन उसमें मनोरंजन और खान पान का पुट ज़्यादा था । धीरे-धीरे शुद्ध रूप से ग्रामीण उत्पादों की बिक्री का बड़ा प्लेटफ़ॉर्म सरस बन कर उभरा । सरस की ख़ासियत यह थी कि इसमें मूलतः ग्रामीण उत्पाद मिलते थे और लगभग पूरे देश के राज्यों के हस्त शिल्पियों का प्रतिनिधित्व रहता था । शुरुआती दौर में सरस के आयोजकों के समक्ष ग्रामीण उत्पादों की अच्छी पैकेजिग एक बड़ी समस्या बनी रही । जिसे लेकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्यशालाओं का आयोजन किया गया । लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिले । बाद में कपार्ट और ग्रामीण विकास मंत्रालय ने संयुक्त रूप से देश के विभिन्न राज्यों में ग़ैर सरकारी संगठनों के माध्यम से पैकेजिग व मूल्य निर्धारण पर बड़े स्तर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए । 2003 आते आते सरस ग्राहकों की पहली पसंद बन गया । सरस मेलों की चहुँओर चर्चा होने लगी । ग्रामीण उत्पादों की मार्केटिंग अपने आप में एक चुनौती थी । जहां हस्त शिल्पियों को बाज़ार की माँग के अनुसार तैयार करना था वहीं शहरी ग्राहकों के बीच ग्रामीण उत्पादों के प्रति भरोसा भी पैदा करना था । शुरुआती सालों में सरस मेलों में अचार मुरब्बा की भरमार होती थी । इसलिए ग्राहकों को अन्य उत्पादों के विकल्प देना भी ज़रूरी था । 2005 में विज्ञान भवन में हुए एक कार्यक्रम में ‘दिल्ली डिक्ल्रेशन नाम से जो मसौदा तैयार हुआ उसमें ग्रामीण उत्पादों के विभिन्न प्रकारों की पहचान भी एक मुद्दा था । बाद में क़रीब 60 उत्पादों पर एक व्यापक सहमति बनी जो सरस की मूल पहचान बन सकते थे । विभिन्न चुनौतियों को झेलती सरस की यात्रा चलती रही । वर्ष 2008 आते आते विभिन्न राज्यों ने अपने अपने स्तर पर ग्रामीण उत्पादों के बाज़ार को तलाशना शुरू कर दिया था ।
2009 तक आते आते देश भर से महिलाओं के आत्मनिर्भरता के हज़ारों उदाहरण दिये जाने लगे । कई प्रदेशों में ग्रामीण महिलाओं ने सरस से हुए स्वावलंबन की बदौलत अपने बच्चों को मेडिकल इंजीनियरिंग व आईटी क्षेत्र में दाख़िला दिलाया । ग्रामीण भारत में रोज़गार को लेकर यह बहुत बड़ा बदलाव था । जब सरस के माध्यम से हज़ारों महिलाओं ने मार्केटिंग के गुर सीखे । सबसे बड़ा योगदान सरस मेलों का यह माना जाता है कि इससे महिलाओं के आत्म विश्वास में ख़ासा बढ़ोतरी हुई । महिलाओं ने अपने उत्पादों को अपने अपने क्षेत्र के स्थानीय बाज़ारों तक पहुँचाना शुरू किया । ग़ौरतलब है कि इनमें ज़्यादातर महिलाएँ स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना ( एस जी एस वाई )की लाभार्थी थी ।
अभी तक सरस ग्रामीण उत्पादों का एक बड़ा प्लेटफ़ॉर्म बन चुका था । 2012 में ग्रामीण महिलाओं के लिए एक व्यवस्थित विभाग की स्थापना पर विचार विमर्श होने लगा । मंत्रालय व कपार्ट के वरिष्ठ अधिकारियों की लंबी लंबी बैठके होने लगी । कई कार्यशालाओं की ब्रेन स्टोरमिग के पश्चात 2013 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की स्थापना हुई । यह ग्रामीण महिलाओं के रोज़गार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था । दिल्ली के सम्राट् होटल में इसका कार्यस्थल चुना गया । सधे हुए और लगनशील अधिकारियों की इसमें तैनाती की गई । उसके बाद विभिन्न राज्यों में महिलाओं के रोज़गार संबंधी नवीन प्रयोग किये जाने लगे । मार्केट से प्रोफेशनल्स लेकर आजीविका मिशन के विभिन्न आयाम गढ़े गये । बैंकों से लोन की सुविधा से लेकर ज़मीनी स्तर पर महिलाओं की सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक प्रयास होने लगे । दूसरी तरफ़ राज्यों को सरस के आयोजन के लिए अधिकृत किया गया । नतीजतन लाखों महिलाओं को अपने उत्पादों को बेचने अवसर मिलने लगा । राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने स्वयं सहायता समूहों के गठन की दिशा में युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया । दूसरी तरफ़ सरस मेलो के लेआउट से लेकर डिज़ाइन आदि में भी सुधार किया जाने लगा ।
2015 तक आते आते सरस मेलों के स्टालो की माँग ज़्यादा होने लगी । महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के कारण सरस मेले लगभग कम पड़ने लगे । इसी दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अधिकारियों ने ई – मार्केटिंग की दिशा में अपने कदम बढ़ाए जिसके परिणाम सकारात्मक रहे । इसी दौरान कपार्ट ने सरस मेलों के दौरान महिलाओं के लिए डिज़ाइनिग , पैकेजिग जैसे विषयों पर कार्यशालाएँ आयोजित करना शुरू कर दिया जिससे ग्रामीण महिलाएँ नवीन जानकारियों से वाक़िफ़ हो सके ।
इतने वर्षों में सरस मेले शहरी ग्राहकों के बीच ख़ास जगह बना चुके थे । सरस की बेदाग़ छवि और समर्पित टीम के कारण अन्य मेलों से अलग ही नज़र आने लगे । 2017 से सरस को सरस आजीविका नाम से जाना जाने लगा । 2019 के अक्टूबर माह में दिल्ली के इंडिया गेट पर हुए आयोजित सरस मेले ने अपनी विशाल भव्यता और प्लानिंग में एक कीर्तिमान स्थापित किया । इंडिया गेट सरस को लगभग भारत सरकार के हर विभाग के अधिकारियों ने विज़िट किया । सरस आयोजन के इतिहास में इंडिया गेट सरस एक मील का पत्थर साबित हुआ । यहाँ लगे फ़ूड कोर्ट ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया । इसके बाद नोएडा सरस गुरुग्राम सरस ने भी शानदार भूमिका अदा की । 2022 में लगे सरस फ़ूड फ़ेस्टिवल की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है । सोशल मीडिया में सरस फ़ूड फ़ेस्टिवल के लाखों चहेतों ने इसे एक सफल आयोजन बताया ।
सरस 25वें साल में प्रवेश कर गया । इसको इस मंज़िल तक पहुँचाने में सैंकड़ों अधिकारियों का योगदान है । राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान ( पूर्व में कपार्ट) व ग्रामीण विकास मंत्रालय की सूझबूझ की बदौलत सरस आज देश की सबसे बड़ी अनुशासित इवेंट मानी जाती है । देश भर में 70 सरस और दिल्ली में 5/6 सरस मायने रखते है । पिछले दो वर्षों से राष्ट्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज संस्थान ने महिलाओं को बड़े प्रोफेशनल तरीक़े से मार्केटिंग के प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किये हैं । निश्चित तौर पर इससे सरस की शान में चार चाँद लगेंगे ।
फ़िलहाल सरस की यह शानदार यात्रा जारी है । ज़रूरत है इस विरासत को सहेजने और सँभालने की । जिसकी बदौलत लाखों करोड़ों महिलाओं के जन जीवन में सुधार आया है।
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