गुरुग्राम। आधुनिकता के दौर में पहुंचकर हमें अपनी पौराणिकता को नहीं भूलना। हमें अपने त्योहारों पर उन सब सामानों का उपयोग करना है जो हमारी संस्कृति का हिस्सा होने के साथ-साथ किसी की रोजी-रोटी का भी जरिया होता है। इस बार दिवाली के त्योहार पर हमें बाजारों में बिकने वाले फैशनेबल चाइनीज लडिय़ों, दीयों की बजाय हमारे अपने घर-गांव के आसपास बनने वाले मिट्टी के दीयों से घर को रोशन करना है। हमारा यह प्रयास उन लोगों को खुशी देगा,
उनकी दीवाली बनवाएगा जो मिट्टी में मिट्टी होकर यह सामान तैयार करते हैं। यह अपील की है पर्यावरण संरक्षण विभाग भाजपा हरियाणा प्रमुख नवीन गोयल ने।
अपने कार्यालय में समाजसेवियों विजय वर्मा, सुरेंद्र शर्मा, गिरवर नारायण शर्मा, अमित हिंदू, बलजीत सुभाष नगर, भीम सेन, पवन सैनी व मनीष के साथ मिट्टी के दीये उपयोग करने की प्रेरणा देते हुए नवीन गोयल ने कहा कि आधुनिकता के इस दौर में भी मिट्टी के दीये की पहचान बरकरार रखना हमारी जिम्मेदारी है। मिट्टी के दीये बनाने के काम में जुटे कारीगरों से सिर्फ नाम मात्र दीये ना खरीदकर हमें अच्छी-खासी संख्या में दीये खरीदकर अपने घर की मुंडेर से लेकर आसपास बने पूजा स्थलों, पार्क आदि को भी रोशन करना है। श्री गोयल ने कहा कि मिट्टी के दीये भारतीयता की खुशबू से भरपूर हैं। अपने घर को सस्ते में दीयों से रोशन करने के लिए मिट्टी के दीयों से बढ़कर कोई चीज नहीं है। दिवाली में प्रत्येक घर में मिट्टी के दीयें जलाने की परंपरा पुरानी है।
नवीन गोयल ने कहा कि भले ही चाइना जैसे देशों ने सस्ती और सुलभ चीजें हमें उपलब्ध करा दी हों, लेकिन हमें अपनी संस्कृति से दूर नहीं होना है। मिट्टी के दीयें सबसे शुद्ध होते हैं। इनसे पॉजिटिविटी आती है। किसी तरह का प्रदूषण भी नहीं फैलाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने वोकल फॉर लोकल की अपील पहले ही देशवासियों से की है। पहले भी लोगों ने स्थानीय वस्तुओं का इस्तेमाल करके चीन को आइना दिखाया था। अब भी हम सबको ऐसा ही करना है। चाइनीज दीयों, लडिय़ों पर भारतीय मिट्टी की खुशबू भारी पडऩी चाहिए।
नवीन गोयल ने कहा कि चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने हमारी मिट्टी के दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। मगर पिछले दो वर्षोंं से लोगों की सोच में बड़ा बदलाव आया है। एक बार फिर गांव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। मिट्टी से निर्मित मूर्तियां, दीये व खिलौने पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। इसकी बनावट, रंगाई व पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है। दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इसके साथ ही गांवों में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहां पूरा सहयोग मिलता रहा, वहीं गांव में रोजगार के अवसर भी खुलते हैं।