झांसी।1932 और 1936 ओलंपिक में हॉकी खेल में स्वर्ण पदक विजेता कैप्टन रूपसिंह का जन्मदिन हीरोज मैदान पर निर्मित कैप्टन रूपसिंह पवेलियन में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर धूमधाम से मनाया गया।इस अवसर पर मेजर ध्यांचन्द हीरोज क्लब खेलकूद विकास समिति के पदाधिकारी अशोक सेन पाली, बृजेन्द्र यादव,इसरत हुसैन, वली मोहम्मद,फुटबाल असोसिएसन सचिव वहीद खान,तनवीर आलम,विनोद यादव,अतीक अंसारी,रामसेवक रजक,शेख रफीक, अशोक कुमार,रामस्वरूप,साबिर,जीशान,सहित खिलड़ी और खेल प्रेमी मौजूद रहे।कार्यक्रम का संचालन बृजेन्द्र यादव ने और आभार तुषार सिंह ने व्यक्त किया।इस अवसर पर वक्ताओं ने कैप्टन रूप और मेजर ध्यांचन्द से जुड़े कई संस्मरण उपस्थिह लोगो को बताए। इस अवसर पर एक प्रदर्शनी फुटबाल मैच ध्यांचन्द इलेविन और रूपसिंह इलेविन के मध्य खेला गया जिसमें ध्यानचंद इलेविन ने रूप सिंह इलेविन को 3-2 से हराया।।
हम सौभाग्यशाली है कि हम उस भारत धरती पर पैदा हुए हैं जहाँ राम लक्ष्मण, कृष्ण बलराम जैसे भाईयो की गाथा सदियों से हमारे कानो मे गूंजती रही हैं इन्हीं गाथाओं की श्रंखला में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और उनकी जादुई कला के संवाहक रूप सिंह की गाथा है जो भारत की हॉकी को दुनिया मे रोशन करती है । राम और लक्ष्मण की कोई तुलना नहीं कर पाया या यह कहा जाए कि दोनों तुलना से परे है पर एक दूसरे के पूरक है ठीक उसी प्रकार हॉकी के जादूगर ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह की कभी भी तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि मैदान में दोनों भाईयो के खेल का समन्वय सामंजस्य इस बात का स्वयं उदहारण है कि दोनों एक दूसरे के पूरक रहे हैं तुलना से परे है ।जब परस्थितियों ने जैसी भूमिका निर्धारित की उन परस्थितियों मे दोनो ने अपने आपको परस्थितियों के अनुकूल बनाया और भारत माँ की सेवा मे सब कुछ लगा दिया।
अब 1932 के अमेरिका के खिलाफ मैच को ही ले दोनों भाई अमेरिका पर तब तक गोल मारते रहे जब तक मैच समाप्ति की घोषणा नहीं हो गयी ।किसी ओलिम्पिक मुकाबले मे किसी टीम पर 24 गोल करना कोई हंसी मजाक नहीं वह भी शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका जैसे देश पर वह भी उसी की धरती पर शर्मनाक तरीके से पराजित करना दुनिया के इतिहास मे वह जीत अपना मह्त्व रखती है क्योंकि अमेरिका अपनी धरती पर किसी से कभी इस शर्मनाक तरीके से पराजित नहीं हुआ है ।सबसे बढकर ध्यानचंद और रूपसिंह के खेल को देख ओलिम्पिक कमेटी को भी गुलाम भारत के खिलाड़ियों को सन ऑफ इंडिया कहकर संबोधित करने पर मजबूर होना पड़ा भारत के लाल और यह सब संभव हो पाया हॉकी जादूगर ध्यानचंद और रूपसिंह के मनोहारी औरचमत्कारिक खेल की बदोलत ।
1936 बर्लिन ओलिम्पिक हॉकी फाइनल मैच में दोनों भाईयो के मैदान मे जुते उतारकर फेंकने भर की देर दी थी की फिर जो हुआ पूरी दुनिया ने दांतों तले ऊंगली दबा ली जर्मनी के तानाशाह हिटलर को मैदान से पलायन कर अपने देश की पराजय स्वीकार करने पर मजबूर होना पड़ा एक के बाद एक 8 गोल जिसकी शुरुआत रूप सिंह ने की और आखिरी गोल ध्यानचंद ने दागकर जिसका समापन किया और इतना ही नहीं कप्तान ध्यानचंद को जब जर्मन गोल कीपर ने चोटिल कर दिया तब रूप सिंह के साथ साथ सभी भारतीय खिलाड़ियों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया कप्तान ध्यानचंद ने समझाया रूप अब गेंद और मैदान पर ऐसा नियंत्रण करके दिखाना है कि जर्मन गोल तक गेंद ले जाना है पर गोल नहीं करना है सिर्फ जर्मन खिलाड़ियों को भारतीय हॉकी की कला का प्रदर्शन दिखाना है और रूपसिंह ने ध्यानचंद साथी खिलाड़ियों के साथ मिलकर ऐसा ही किया और जर्मन खिलाडियों को मैदान मे चारों और घुमा घुमा कर ऐसा नचाया की जर्मन खिलाड़ी यह सोचने पर मजबूर हो गए कि कब मैच समाप्त हो और हम इस जिल्लत भरी पराजय को स्वीकार करते मैदान के बाहर निकले ।रूपसिंह की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा चोट का बदला खेल दिखाकर लिया शाबाश रूप शाबाश ।
दोनों भाईयो ने हॉकी मैदान मे जो भी किया वह हॉकी की दुनिया मे आज भी अविजित कीर्तिमान है जिसकी वजह से आज भी दोनों भाईयो की खुशबु पूरी दुनिया मे बरकरार है और इसलिए 1972 का म्यूनिख ओलिम्पिक मे रूप सिंह के नाम पर सड़क का नामकरण किया जाता है तो वहीं 2012 लंदन ओलंपिक मे हॉकी के जादूगर ध्यानचंद , कैप्टन रूपसिंह, कॉदुइसcalduis दुनिया के महान हॉकी खिलाड़ियों के नाम से यू ट्यूब मेट्रो स्टेशन के नाम रखे जाते है जो हर भारतीय का सम्मान और देश के लिए गौरव है वहीं हीरोज क्रीड़ा एवं ध्यानचंद समाधि स्थल झाँसी मे अपने चाचाजी रूप सिंह जी को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए olympion अशोक कुमार ध्यानचंद ने रूप सिंह जी के नाम से 29 अगस्त राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर भारत के ओलम्पियंस इंटरनेशनल हॉकी खिलाड़ियों की उपस्थिति मे पवेलियन का नामकरण किया है ।
साथ1948 लंदन ओलिम्पिक स्वर्ण पदक विजेता कप्तान दादा किशन लाल, 1952 हेल्सनिकी ओलिम्पिक स्वर्ण पदक हॉकी टीम कप्तान के डी सिंह बाबू और 1956 मेलबोर्न हॉकी स्वर्ण पदक विजेता टीम कप्तान बलबीर सिंह जी के नाम पर भी पैवेलियन बनाकर भारतीय हॉकी के स्वर्णिम अध्याय को कड़ी से कड़ी जोड़ने की सार्थक पहल अशोक कुमार ध्यानचंद ने की है।साथ ही महान हॉकी ओलंपियन कैल्दुइस साहब और उधम सिंह जी के नामों को भी हीरोज क्रीड़ा स्थल पर ससम्मान प्रतिस्थापित किया जायेगा ।
आसमान के चांद के रूप का ही तो वर्णन होता है ठीक इसी प्रकार धरती के चांद ध्यानचंद के रूप का बखान हॉकी की दुनिया मे न हो यह संभव नहीं । संयोग देखिए ध्यान सिंह ध्यानचंद हुए तो भाई भी रूपसिंह मिला चांद के बिना रूप अधूरा और रूप के बिना चांद अधूरा ।जिस प्रकार चांद के रूप के लिए रुप चौदस है 8 सितंबर को ध्यानचंद के रूप की जन्म जयंती है जिनका जन्म मध्यप्रदेश की धरती संस्कार की नगरी जबलपुर मे हुआ आज हम भारत वासी रूप सिंह जी के कदमों मे श्रद्धा सुमन अर्पित करते है ।