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विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव में सम्मिलित होने की प्रबंधक डॉ संदीप सरावगी ने सभी को दिलाई शपथ। « The News Express

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव में सम्मिलित होने की प्रबंधक डॉ संदीप सरावगी ने सभी को दिलाई शपथ।

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर स्वर्ण जयंती सभागार बीकेडी प्रांगण में आयोजित कार्यक्रम में सर्वप्रथम मां शबरी और भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसमें मुख्य अतिथि एस के राय प्राचार्य बुंदेलखंड महाविद्यालय झांसी, डॉ. संदीप सरावगी वरिष्ठ समाजसेवी, अध्यक्षता गोपाल सहरिया अध्यक्ष मां शबरी सहरिया आदिवासी झांसी, विशेष अतिथि डॉ देव प्रिया जी वरिष्ठ समाजसेवी,मुख्य वक्ता राजेश मालवीय जी गायत्री पीठ झांसी, लाडकुवर सहरिया प्रधान परगना मोठ, काशीराम सहारिया वरिष्ठ समाजसेवी, वही मां शबरी सहारिया आदिवासी संस्था के प्रबंधक डॉ.संदीप सरावगी ने अपने उद्बोधन में कहा की देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं

जिसे हम सभी स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं आप सभी से निवेदन है अपने घरों और कार्यालयों पर 13 से 15 अगस्त तक तिरंगा जरूर फहरायें। आज आदिवासी दिवस है आदिवासी अर्थात प्रारंभ से रहने वाले लोग। हमारे देश में सबसे प्राचीन निवासी आज आदिवासी के रूप में जाने जाते हैं समय के साथ काफी बदलाव हो रहे हैं आदिवासी समाज के लोग भी आज प्रशासनिक सेवाओं में उच्च पदों पर काम कर रहे हैं। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री ने आज अपना यह नारा सिद्ध कर दिया “सबका साथ सबका विकास”। देश के सबसे पिछड़े समाज का एक सदस्य आज हमारे देश का महामहिम राष्ट्रपति है, वास्तव में आदिवासी समाज की प्रतिनिधि श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के रूप में चुनकर इतिहास रच दिया है।आदिकाल से ही और पौराणिक ग्रंथों में भी आदिवासी समाज का उल्लेख है।

मां शबरी के बिना तो रामायण भी अधूरी है मां शबरी की उस समय की सोच आज परिणीति के रूप में देखी जा रही है मां शबरी जिस कबीले से थी उस समुदाय का नियम था कि विवाह के समय सैकड़ों जानवरों की कुर्बानी दी जाती थी इसे रोकने के लिए मां शबरी ने विवाह के 1 दिन पूर्व ही अपना घर त्याग दिया था और दंडकारण्य में आश्रम में रहकर साध्वी का जीवन व्यतीत करने लगी थी आराम की जिंदगी छोड़ उन्होंने समाज के सामने एक अच्छा उदाहरण पेश किया था। यह उस समय की बात है जब महिलाएं घर तो छोड़ो घूंघट के बाहर अपना सिर नहीं निकालती थी। इसी तरह देश की आजादी की लड़ाई में बिरसा मुंडा का अमूल्य योगदान रहा उन्होंने अपने छापामार युद्ध कौशल से अंग्रेजों को संकट में डाल दिया था और देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था। ऐसे ही कई और उदाहरण है जो एक मंच पर निर्धारित समय में नहीं गिनाये जा सकते लेकिन इतना जरूर कहूंगा

देश को आगे बढ़ाने में आदिवासी समाज कभी पीछे नहीं रहा उसने अपना सर्वस्व त्याग कर देश हित में कार्य किया है। सीमित संसाधनों के साथ उनके योगदान को मैं प्रणाम करता हूं और इस बात से आश्वस्त कराना चाहता हूं जहां भी आपको मेरी आवश्यकता हो मैं आपके साथ खड़ा मिलूंगा। इस मौके पर सभी ने शपथ ली की आजादी के अमृत महोत्सव में 15 तारीख को तिरंगा यात्रा में सम्मिलित होकर झांसी में इतिहास रच दूंगा। इस अवसर पर सैकड़ों की तादाद में आदिवासी समुदाय की माताएं बहने एवं बुजुर्गों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया कार्यक्रम में गोपाल, दिनेश भैया लाल,मोहन,राम प्रसाद, रानी सहारिया के साथ संघर्ष सेवा समिति की राजू सेन,संदीप नामदेव,भरत यादव,संजीव गुप्ता आदि उपस्थित रहे

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