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देशभक्ति के प्रतीक महान योद्धा महाराणा प्रताप जी की जयंती 2022 को कब मनाई जाएगी « The News Express

देशभक्ति के प्रतीक महान योद्धा महाराणा प्रताप जी की जयंती 2022 को कब मनाई जाएगी

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था लेकिन सन 1540 ई. में इस दिन ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसलिए हिंदी पंचांग के अनुसार इस बार महाराणा प्रताप की 481वीं जयंती 13 जून 2021 दिन रविवार को मनाई जाएगी।

यदि भारत के वीरों की बात की जाए तो महाराणा प्रताप का नाम अवश्य लिया जाता है। महाराणा प्रताप का जन्म सोलहवीं शताब्दी में वीरों की भूमि कहे जाने वाले राजस्थान में हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ में हुआ था लेकिन सन 1540 ई. में इस दिन ज्येष्ठ मास की तृतीया तिथि थी, इसलिए हिंदी पंचांग के अनुसार इस बार महाराणा प्रताप की 481वीं जयंती 13 जून 2021 दिन रविवार को मनाई जाएगी। महाराणा प्रताप ने अकबर को रणभूमि में कई बार टक्कर दी यहां तक की अपने परिवार के साथ जंगलों में विपरीत से विपरीत परिस्थितियां भी देखी परंतु अपनी पराजय नहीं स्वीकारी और अकबर के समक्ष कभी अपना शीश नहीं झुकाया। आज भी महाराणा प्रताप के शौर्य और वीरता की कहानियां सुनाई जाती हैं और उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। आइए महाराणा प्रताप की जयंती के पावन अवसर पर जानते हैं उनसे जुड़ी हुई खास बातें।

राजस्थान के कुम्भलगढ़ में 9 मई, 1540 ई. को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था, इन्होंने युद्ध कौशल अपनी मां से ही सीखा था।महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए भीषण युद्ध को आज भी इतिहास में पढ़ा जाता है। मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप यह युद्ध सन 1576 ई. में लड़ा गया था।अकबर के पास बहुत बड़ी सेना और हथियार थे परंतु महाराणा प्रताप के पास उनका शौर्य, वीरता की थी। उनके पास कम ही सही परंतु शूर-वीर योद्धा थे। जिन्होंने महाराणा प्रताप का हर परिस्थिति में साथ दिया।

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास मात्र 20 हजार सैनिक थे और अकबर के पास 85 हजार सैनिकों की बड़ी सेना थी। फिर भी महाराणा प्रताप और उनकी सेना ने पूरी वीरता के साथ अकबर से लोहा लिया। यह युद्ध न तो अकबर जीत सका और न ही महाराणा प्रताप पराजित हुए। अकबर कभी भी महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर पाया।महाराणा प्रताप का सबसे चहेता घोड़ा चेतक था, आज भी उसकी कविताएं पढ़ी जाती हैं। महाराणा प्रताप की तरह उनका घोड़ा चेतक भी बहुत बहादुर था। इतिहास के मुताबिक युद्ध भूमि में चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बिठाकर कई फीट चौड़े नाले से छलांग लगा दी थी।

युद्ध में घायल होने के कारण चेतक की मृत्यु हो गई थी। आज भी चेतक की समाधि हल्दी घाटी में बनी हई है जो उसकी बहादुरी को बयां करती है। जब महाराणा प्रताप अपने वफादारों और परिवार समेत जंगलों में भटक रहे थे और अकबर के सैनिक उनके पीछे पड़े तब खाना बनने के बाद भी उन्हें खाने के लिए भोजन नहीं मिल पाता था। एक बार महाराणा प्रताप की पत्नी और पुत्रवधू घास के बीजों की रोटी बनाकर देती हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना सिर नहीं झुकाया। अकबर भी स्वयं महाराणा प्रताप की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाया था। इतिहासकारों के मुताबिक अकबर ने महाराणा प्रताप से समझौते के लिए कई दूत भेजे थे, लेकिन महाराणा प्रताप ने हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि राजपूत योद्धा कभी भी किसी के सामने घुटने नहीं टेकते।

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