पेट पालने के लिए रेप तक झेला,आंटी ने अधेड़ के हाथों बेच दिया, फिर बनी किन्नर महामंडलेश्वर, मेरे ऊपर फिल्म बन रही

 

मैं निर्मोही अखाड़ा की महामंडलेश्वर हिमांगी सखी। पहली किन्नर, जो दुनियाभर में भागवत गीता, शिव पुराण और गरुड़ पुराण की कथा करती हूं। मेरा जन्म गुजरात के वडोदरा में हुआ था, लेकिन बचपन में ही हम लोग मुंबई आ गए। पापा फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर, मोहन स्टूडियो में पार्टनर और विश्वकर्मा फिल्म्स कंपनी के मालिक थे। जबकि मां डॉक्टर थीं।

उस जमाने में टीवी, एंबेसडर कार सब कुछ था हमारे पास। मैंने रेखा, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र और संजय दत्त जैसे सेलिब्रिटीज को बहुत करीब से देखा है, लेकिन ठाठ-बाट के ये दिन ज्यादा समय तक नहीं रहे।

एक दिन पापा को अचानक हार्ट अटैक आया। हम उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे, लेकिन बचा नहीं सके। तब मैं तीसरी क्लास में थी। बहन मुझसे एक साल छोटी थी। पापा गुजराती थे और मां पंजाबी। दोनों ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ लव मैरिज की थी। पापा के अचानक चले जाने से मां गुमसुम रहने लगीं। रिश्तेदारों ने भी घर आना-जाना बंद कर दिया। सिर्फ चाचा ने साथ दिया और अपने साथ वडोदरा ले गए, लेकिन वहां भी मां का मन नहीं लगा। वे काफी अकेलापन महसूस करती थीं।

मां को मोहन स्टूडियो की पार्टनरशिप के कुछ पैसे मिले थे, उन्होंने मुंबई के मीरा रोड पर चार बेडरूम का फ्लैट खरीद लिया। इस तरह दो साल बाद हम फिर से मुंबई शिफ्ट हो गए। मां को उम्मीद थी कि पापा की मौत के बाद नानी का दिल पसीजेगा, वे शायद मान जाएंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नाना-नानी पर पापा की मौत का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने एक बार भी हमारा हाल नहीं पूछा।

इससे मां को काफी तकलीफ हुई। वो गुमसुम रहने लगीं, धीरे-धीरे उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ती चली गई। पागलों की तरह बिहेव करने लगीं।कभी खुद से जोर-जोर से बातें करतीं, तो कभी जोर-जोर से हंसने लगतीं। फिर सड़क पर भाग जातीं। पापा का नाम लेकर बुलाती रहती थीं। घर का सामान बाहर फेंक देती थीं, अंदर कूड़ा-कचरा रख देती थीं।

हम दोनों बहनें मां को इस तरह देखकर डर जाते थे। एक दिन तो मां ने हमें इतना पीटा कि पड़ोसियों को बाथरूम की खिड़की से हमें बाहर निकालना पड़ा।इस बीच धीरे-धीरे हमारे पैसे खत्म होने लगे। हमारी पढ़ाई छूट गई, मांगकर खाने की नौबत आ गई। पड़ोसियों से खाना मांगते, तो वे मुंह पर ऐसे रोटी फेंकते जैसे कोई जानवर को भी न खाने को दे।

घर के बगल में ही एक पंजाबी परिवार रहता था। उन्होंने हमारी मजबूरी का फायदा उठाया। मुझसे घर का काम करवाना शुरू कर दिया। मैं उनके घर बर्तन साफ करती, कपड़े धोती, झाड़ू-पोंछा करती।बदले में रात में मुझे और बहन को दो-दो रोटी दे देते थे। उनके घर इतना ज्यादा काम होता था कि कई बार रात में भी वहीं सो जाती थी।

एक रात उनका बेटा कमरे में आया और मेरा मुंह दबाकर रेप करने लगा। उसकी मां आवाज सुनकर कमरे में आई, बत्ती जलाकर देखा और चली गई। उस दिन के बाद मेरे साथ हर रात रेप होता, लेकिन मैं दो वक्त की रोटी की खातिर विरोध नहीं कर सकी।उस वक्त मेरी उम्र 12 साल रही होगी। बहुत दर्द होता था मुझे मानसिक भी और शारीरिक भी, लेकिन किससे क्या कहती। कहीं कोई रास्ता था ही नहीं। एक रोज मामा घर आए। मैं पड़ोसी के घर काम करने गई थी। उन्होंने घर में मां के साथ मारपीट की, सारे गहने छीन लिए। दोनों बहनों की फिक्स्ड डिपॉजिट के कागज लेकर चले गए।

इससे मां को और तकलीफ हुई। वो बिस्तर पर ही पड़ी रहने लगीं। कुछ रोज बाद की बात है। अलसुबह प्रभात फेरी निकलने की आवाज आ रही थी, तभी बहन ने दरवाजा खटखटाया और कहने लगी कि मां उठ नहीं रही है। जाकर देखा तो मां जा चुकी थीं।हम दोनों छोटे थे, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करें, क्या करें। सारा मोहल्ला घर के सामने इकट्ठा हो गया। मैंने किसी से कहा कि नानी बोरीवली में रहती हैं, मुझे वहां ले चलो। मैं नानी के घर गई, तो उन्होंने कहा कि कांता (मेरी मां) हमारे लिए उसी दिन मर गई थी जिस दिन उसने अपनी मर्जी से शादी की थी।

मैं रोती हुई वहां से आ गई। तब तक कुछ लोगों ने मां की अर्थी तैयार कर दी थी। थोड़ी देर बाद अचानक मामा, मामी और नानी आ गए। रोने-धोने का ड्रामा करने लगे। दोनों बहनों ने मां को कंधा दिया और मुखाग्नि दी।

दाह संस्कार के बाद जब हम लौटे तो देखा कि घर में नानी और मामा सब सामान इधर-उधर कर रहे हैं कि कहीं कुछ कागज या गहने मिल जाएं।मां के जाने के बाद हम अनाथ हो गए। पड़ोसी हमारा शोषण करने लगे। दिन-रात काम करने के बाद भी दो रोटी ढंग से नहीं देते थे। बदमाश लड़के घर के बाहर घूमते रहते, दोनों बहनों पर फब्तियां कसते। दो साल ऐसे ही चलता रहा। जैसे-तैसे करके पड़ोसियों से पैसे लेकर बहन की शादी कर दी। लड़के वाले अच्छे थे। शादी में हमारी आर्थिक मदद भी की। इसके बाद मैं एकदम अकेली हो गई। पड़ोसियों ने मेरा घर किराए पर दे दिया और पैसे भी खुद लेने लगे। यानी यहां से शरीर और मन के साथ धन का शोषण भी शुरू हो गया।

मैंने अपने पड़ोसियों से पैसे मांगे कि मुझे किराए वाले पैसे दे दो, टैक्स और मेंटेनेंस भरना है। इतना कहने की देर थी कि पड़ोस के अंकल ने मेरे मुंह पर पानी का ग्लास फेंक मारा। मैं बस रोकर रह गई।इस बीच रात को जोरदार बारिश हुई। शायद पहली बार मैंने इतनी तेज बारिश देखी। मेरे लिए वो काली रात थी। पड़ोसी ने मेरा सारा सामान फेंक दिया और मुझे घर से निकाल दिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रात को अकेली कहां जाऊं।

उसी मोहल्ले में एक बूढ़े अंकल अकेले रहते थे। मैं उनके घर चली गई। उन्होंने रात काटने की इजाजत तो मुझे दी, लेकिन बदले में मेरा रेप भी कर दिया। इसके बाद मैं अपनी एक परिचित आंटी के घर चली गई। ​आंटी ने मुझे किसी के घर भेजा और कहा कि वो तुम्हारी जॉब लगवा देंगे। वहां जाने पर पता लगा कि उस आंटी ने मुझे सेक्स वर्क के लिए बेच दिया था। मैं बहुत रोई, उस अधेड़ को अपनी सारी कहानी सुनाई। वो अच्छा इंसान था, मुझे छोड़ दिया और मदद के रूप में 10 हजार रुपए भी दिए।

इसके बाद मैं वहां से इस्कॉन मंदिर चली गई। भगवान कृष्ण के सामने रोने लगी। मैंने उनसे कहा कि मेरा संघर्ष कम करिए, वर्ना जान दे दूंगी या कुछ गलत राह पकड़ लूंगी। आप चाहो तो मुझे मौत दे दो, लेकिन अब कष्ट मत दो। मुझसे सहा नहीं जा रहा। रहम करिए। कुछ दिन बाद मैं वृंदावन के इस्कॉन मंदिर चली गई। वहां दीक्षा ली। शास्त्रों का अध्ययन करने लगी। भक्ति वैभव कोर्स किया, भगवद् गीता का कोर्स किया। पूजा पाठ और ब्रज की धरती में रम गई। मैं इस्कॉन की किताबें बांटती, मंदिर के काम करती, भजन-कीर्तन करती।

मेरा वहां रहना और खाना फ्री था, लेकिन मुझे पैसों की जरूरत थी। एक दिन मैंने पापा के कॉन्टैक्ट खंगाले। उनके जान-पहचान के लोगों से बात की। उनसे काम मांगा। उन लोगों ने मेरी मदद की और कुछ फिल्मों में काम करने का मौका मिला।इस तरह मैं फिल्मों से जुड़ गई। जब भी कोई प्रोजेक्ट मिलता मुंबई चली जाती। काम खत्म होने के बाद फिर वृंदावन लौट आती। मैंने डाउन-टाउन, मुंबई-125 किलोमीटर, द गिनीज ऑफ ब्यूटी जैसी फिल्मों में काम किया। मेरी आखिरी फिल्म हॉलीवुड फिल्म थी, जिसके लिए 20 दिन काम करने पर 2 लाख रुपए मिले। इतनी बड़ी रकम मिली, तो मैं खुशी से पागल हो गई। वंदावन जाकर मैंने जमीन खरीद ली।

वृंदावन मंदिर में एक डेंटल कॉलेज का स्टूडेंट आशीष शर्मा भी आया करता था। पहली दफा मुझे उससे प्रेम हो गया। हम दोनों एक साथ मंदिर में सेवा करते, लेकिन कुछ महीनों में ही लोग हमारे प्रेम को अलग-अलग नाम देने लगे।

मैंने अभी तक अपने किन्नर होने की पहचान को छिपा कर रखा था। कुछ वक्त बाद गुरुजी को पता लग गया कि मैं किन्नर हूं। उन्होंने मुझे फौरन आश्रम छोड़ने को कहा। मैंने उनके आगे हाथ जोड़ा कि वनवास के वक्त अर्जुन ने भी किन्नर रूप धारण किया था। शिखंडी का भी जिक्र किया, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। मैं रोते-रोते बांके बिहारी के पास गई और कहने लगी कि कसम खाती हूं कि ब्रज की धरती से जा रही हूं, तब तक वापस नहीं आऊंगी जब तक मेरा मान-सम्मान सूद समेत नहीं लौटता।

इसके बाद मैं मुंबई आ गई। यहां इस्कॉन के साथियों के साथ भजन-कीर्तन और सत्संग करने लगी। पहली दफा मैंने बोरीवली में नवरात्रि में भगवद् गीता का पाठ किया। फिर मीरा रोड पर पाठ किया।

धीरे-धीरे मेरा कारवां बढ़ता गया। भागवत कथा करने मॉरिशस, बैंकॉक, सिंगापुर और दुबई जाने लगी। जन्माष्टमी पर मेरे विशेष कार्यक्रम होने लगे। 2019 में मुझे पशुपतिपीठ के महाराज गौरी शंकर ने प्रयागराज कुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि दी। मेरा पट्टाभिषेक किया गया। इस तरह मैं दुनिया की पहली किन्नर भागवत आचार्य महामंडलेश्वर हिमांगी सखी हो गई। इंटरव्यू लेने के लिए दुनियाभर की मीडिया आने लगी। टॉप के हिंदी-अंग्रेजी अखबारों में मेरी तस्वीरें छपीं। दो दिन के बाद मुझे किन्नर अखाड़े ने भी बुलाया। उस कुंभ के बाद जब मैं ब्रज गई तो ब्रजवासियों ने मुझे कंधे पर उठा लिया। मैं बांके बिहारी के पास गई और खूब रोई। उनसे कहा कि आपने मेरा मान सूद समेत लौटाया है।

इसी बीच एक रोज अखबारों में खबर छपी कि वृंदावन कुंभ में पहली बार किन्नर महामंडलेश्वर विराजेंगी। फिर क्या था किन्नर अखाड़े ने विरोध करना शुरू कर दिया। मेरा भूमि आवंटन रद्द हो गया। जो एसडीएम पहले तैयार थे, वे अखाड़े के दबाव में झुक गए।

मैंने निर्मोही अखाड़े के संत राजेंद्र दास को फोन किया। उनसे कहा कि मेरी मदद करिए। वे कहने लगे कि किन्नर अखाड़े का कोई पंडाल नहीं लग सकता है। मैंने कहा कि मैं किन्नर अखाड़े से नहीं हूं, न उनका कोई नाम प्रयोग करूंगी। मैं तो पशुपतिपीठ से हूं। खैर मैं निर्मोही अखाड़े के संतों को समझाने में कामयाब रही। आखिरकार मुझे भूमि आवंटित हुई।

इसके बाद निर्मोही अखाड़े ने हरिद्वार कुंभ में मुझे महामंलेश्वर घोषित कर दिया। अपने साथ छत्र के नीचे बिठाया। मैंने वहां कथा सत्संग भी किए।ज्ञानवापी मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करने की कसम खाई थी। तब मुझे जान से मारने की धमकी मिली। वहां के कमिश्नर ने मुझे काशी आने से मना भी किया, लेकिन मैं डरी नहीं। मुझे काशी में रिसीव करने वाले हिंदूवादी संगठन ही थे। उन पर भरोसा करके उनकी कार में साथ रही। उन लोगों ने मुझे अगवा कर लिया।

उन्होंने दबाव बनाया कि मैं ऐसे बयान दूं, जिससे दंगा भड़क जाए, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। कमिश्नर को फोन करके खुद को उनके चंगुल से बचाया। इसके बाद मैंने ज्ञानवापी में जलाभिषेक किया।अब मेरे ऊपर महामंलेश्वर नाम से एक फिल्म भी आ रही है। दुनिया का पहला किन्नर पुराण लिख रही हूं, जो जल्द सभी के हाथों में हो

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