संवादाता अर्चना सिंह
शादी एक ऐसा बंधन है जो पूरी तरह पवित्र होता है। इस बंधन से ही संसार आगे बढ़ता है ।यह बंधन प्यार समर्पण से जुड़ा होता है ।ऐसे ही पवित्र बंधन को 34साल से समर्पण और परिपूर्णता से निभाया है डॉक्टर दीपिका सिसोदिया।डॉक्टर दीपिका सुतोदिया का विवाह 9 अप्रैल 1989 के दिन दिल्ली के ताज पैलेस में डॉक्टर राजेश सुतोदिया से संपन हुआ
डॉक्टर दीपिका काम के साथ साथ साहित्य में भी रुचि रखती है ।शब्दो को कलम में भरकर जब वह कागज पर उकरेती है तो मानो वह जीवांत हो उठते है। उनकी जिंदगी पर लिखी ऐसी ही एक कविता इस प्रकार है
ए-जिन्दगी
रुक जा- रुक जा रे ज़िन्दगानी
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
धीरे चल ले रे ज़िन्दगानी
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
बरसों से तू भाग रही है
अब तेरी मैं ख़बरिया लुँगी…
ना छोडूंगी मैं तेरा पीछा
एक-एक दिन की ख़बरिया लुँगी…
टेढ़ी-मेढि डगरिया मत चल
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
रुक जा- रुक जा रे ज़िन्दगानी
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
स्वागत में तेरे मैं अब
तो आगे आगे रहूँ गी
आलस्य को छोड़-छाड़
प्रभु जी रा भजन करूँगी
कर्मों से भर के भण्डार
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
रुक जा- रुक जा रे ज़िन्दगानी
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
ए-जिन्दगी मैं खड़ी खड़ी अब
तुझ को न ताका करूँगी
लाख तू पीछे छोड़े मुझ को
मैं तेरे संग चालुँगी…
चाहे कितनी हो रफ्तार
तेरे संग मैं भी चालुँगी …
रुक जा- रुक जा रे ज़िन्दगानी
तेरे संग मैं भी चालुँगी …