दिल्ली: कहते हैं समय के साथ साथ लोगों की सोच समझ में बड़ा परिवर्तन होता हैं, लेकिन बड़े ही दुःख की बात है समय तो बहुत आगे निकल चुका है और हम अपने आपको मॉडर्न कहने लगें हैं, लेकिन क्या हम मॉडर्न बन गए हैं? जी नहीं! हम सिर्फ़ मॉडर्न अपने आप को बोलते हैं बनें नहीं। क्योंकि आज भी लोगों की मानसिकता महिलाओं के प्रति वही है। आज भी मर्दो को यही लगता है कि नारी उनकी उपभोग का एक सामान मात्र है, जहां एक तरफ लोग “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा देते हैं वहीं दूसरी तरफ लड़कियों के साथ रोज कोई न कोई अनहोनी की घटना सामने आ रही है।
समय बीता, सरकारें बदली, और हर बार सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर नई नई रणनीति बनाई लेकिन मैं (संध्या सिंह दुर्गा सप्तशती फाउंडेशन की फाउंडर) पूछना चाहती हूं शासन प्रशासन से कि आख़िर उनके द्वारा बनाई गई रणनीति आज भी नारी के अस्तित्व को सुरक्षित करने में विफल आखिर क्यों है? क्यों आज भी हर दिन नारी रोज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए समाज की गंदी सोच से विध्वंस हो रहीं? क्या लड़की, क्या बच्ची, क्या वृद्ध, कोई भी हो आज के समय में अपने आप को सुरक्षित महसूस नही करतीं।
आज के दौर में हर महिला समाज से और सरकार से केवल एक ही प्रश्न पूछना चाहती है कि आखिर क्यों आज भी हम सुरक्षित नहीं है।क्या समाज की बड़ी-बड़ी बातें केवल कहने के लिए है? सरकार के नारी सुरक्षा को लेकर किए गए बड़े बड़े बड़े वादे केवल भ्रम मात्र है? आये दिन लड़कियों को सूटकेस में छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर अलग अलग जगह फेंकने वाले यह अपराधी कौन है और प्रशासन का इनपर कोई शिकंजा क्यों नहीं कसता हैं। जगह बदल जाती हैं किरदार बदल जाते हैं लेकिन अपराध वहीं रहतें हैं एक लड़की को प्रेम जाल में फंसा कर सूटकेस, कभी फ़्रिज में छोटे छोटे टुकड़े करके फेकना। मैं शासन प्रशासन से मांग करती हूं ऐसे जघन्य वीभत्स अपराधों और अपराधियों पर शिकंजा कसा जाए और ऐसी सजा दी जाए कि दोबारा ऐसा जुर्म करने पर हैवानों की रूह कांप उठे।