राजधानी दिल्ली में एक पत्रकार वार्ता के दौरान मध्य प्रदेश में गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध,लेखक व विचारक तथा राजनीतिक रणनीतिकार भास्कर राव रोकड़े ने कहा कि–में सन 2018 में कमलनाथ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही दिग्विजय सिंह ने उनके कार्यालय तथा प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में अपने करीबियों को नियुक्त करना शुरू कर दिया। अपने विश्वासपात्रों को कमलनाथ का करीबी बनाकर उनसे मनमाफिक काम लेने लगे। सरकार बनने के बाद तो वे सहयोग करने के बहाने अनावश्यक हस्तक्षेप करने लगे। जिसके कारण कमलनाथ की लोकप्रियता पर विपरीत असर पड़ने लगा।
क्योकि दिग्विजय सिंह का हस्तक्षेप ना विधायक बर्दाश्त कर पा रहे थे और ना आम जनता। यदि बारीकी से देखा जाए तो 2020 में कमलनाथ सरकार के गिरने के कारणों का अध्ययन किया जाए,तो स्पष्ट हो जाएगा कि विधायक सरकार में दिग्विजय सिंह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर रहे थे तथा उन्हें कमलनाथ से शिकायत थी कि वे उन्हें नजरअंदाज कर दिग्विजय सिंह को क्यों महत्व दे रहे है।
श्री रोकड़े ने पत्रकारों को बताया कि कमलनाथ सरकार के पतन के बाद दिग्विजय सिंह खुद कमलनाथ के सलाहकार व सर्वाधिक महत्व के विश्वासपात्र बन गए। उन्होंने प्रदेश के सभी गुटों के नेताओ को विश्वास में लिया तथा यह तय हो गया कि पूर्व के चुनावों की तरह सन 2023 के विधानसभा चुनाव में कोई भी नेता अपने समर्थकों के लिए टिकट नहीं मांगेगा। बल्कि उन सभी के समर्थकों को कमलनाथ के करीब पहुँचाकर कमलनाथ के करीबियों के रूप में प्रचारित किया जाए। जिन्हें सर्वे की जिम्मेदारी दी गई,वे ऊपरी तौर पर कमलनाथ के लिए काम कर रहे थे। कमलनाथ का सर्वे जमकर प्रचारित हो रहा था किंतु सर्वे टीम के प्रमुख दिग्विजय सिंह के अनुसार काम कर रहे थे। कमलनाथ लगातार कहते रहे..”सर्वे में जिसका नाम आएगा,टिकट उसी को मिलेगी”। लेकिन सर्वे में किसका नाम आएगा,पर्दे के पीछे से यह तय खुद दिग्विजय सिंह ही करते रहे। इसके साथ-साथ वे अपने करीबियों से कमलनाथ पर आरोप भी लगवाते रहे। कांग्रेस हाईकमान तक कमलनाथ की मनमानी भी खूब प्रचारित की गई