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नाम कमाने छोड़ा था घर, नौ साल बाद लौटा कुमार कार्तिकेय तो मां की छलकी आंखें « The News Express

नाम कमाने छोड़ा था घर, नौ साल बाद लौटा कुमार कार्तिकेय तो मां की छलकी आंखें

कानपुर में मनाई खुशी की दीपावली, आंसू बन बह निकली मां की भावनाएं, भावुक हुआ पूरा परिवार

Success Story: कपीश दुबे, इंदौर। मां नौ माह गर्भ में रखने के बाद अपने बच्चे की सूरत देखती है, मगर एक मां ने नौ साल से भी ज्यादा वक्त के बाद अपने बच्चे को देखा तो भावनाएं आंसुओं के रूप में फूट पड़ीं। आइपीएल और घरेलू क्रिकेट में अपनी चमक बिखेर चुके कुमार कार्तिकेय सिंह सालों बाद कानपुर में अपने घर पहुंचे तो मां सुनीता सिंह के होठों से शब्द नहीं निकल रहे थे। बस खुशी के आंसू थे, जो बहे जा रहे थे।

कुमार कार्तिकेय ने क्रिकेट में बड़ा नाम बनने के बाद ही घर लौटने की कसम खाई थी और घर छोड़ दिया था। उत्तर प्रदेश में किस्मत ने साथ नहीं दिया तो दिल्ली पहुंच गए, मगर यहां भी बात नहीं बनी तो अपने कोच की सलाह पर मध्य प्रदेश की ट्रेन पकड़ ली। मध्य प्रदेश की माटी में कुमार कार्तिकेय की गेंदों ने ऐसी फिरकी ली कि वे पहले रणजी टीम तक पहुंचे और फिर मप्र को इतिहास में पहली बार रणजी चैंपियन भी बनाया।

इस दौरान आइपीएल में भी मुंबई इंडियंस की ओर से अपनी चमक बिखेरी। कसम पूरी हो चुकी थी और मां के बुलावे पर बेटा घर लौटा। कानपुर के रेलवे स्टेशन पर जैसी ही कुमार कार्तिकेय को देखा, मां सुनीता सिंह ने दौड़कर अपने जिगर के टुकड़े को गले से लगा लिया। कुछ बोली नहीं, बस रोने लगीं…और रोती चली गईं। भावनाएं चरम पर थीं और कुमार कार्तिकेय की आंखें भी डबडबा गईं। हर कोई भावुक था। बेटा नौ साल के संघर्ष का वनवास पूरा कर घर लौटा था तो अन्न्ा चौराहा स्थित घर पर दीपावली का माहौल था। पुलिसकर्मी पिता श्यामनाथ सिंह भी भावुक हो गए। स्वजन और दोस्त मिलने पहुंचे, पटाखे फोड़े गए, बधाइयां दीं!

मां सुनीता बताने लगीं, भैया (कुमार कार्तिकेय) इतने साल दूर रहा, बहुत चिंता होती थी। उसने बहुत तकलीफ देखी है। हमारी भी मजबूरी थी वरना कौन मां होगी जो बेटे से दूर रहेगी। थोड़ी भावुक होकर कहती हैं, जब छोटा था तो अभ्यास करने सुबह चार बजे मैदान पहुंच जाता था। हमारे क्वार्टर के सामने ही मैदान था। हमारा घर ऊपर था। फोन पर पूछता था कि मां खाने में क्या बनाया है। मैं कहती कि मैदान पर टिफिन दे देती हूं तो मना करता था। घर के नीचे आ जाता था और मैं रस्सी से बांधकर टिफिन दे देती थी। जब वह घर से दूर चला गया तो सोचती थी कि कहां खाना खाता होगा? कैसा खाना मिलता होगा? उससे पूछती थी कि भैया कब आओगे तो कहता कि जिस दिन कुछ बनूंगा तो घर लौटूंगा। फोन पर बात करते हुए रोने लगती थी मां

मां सुनीता ने कहा- मैंने उसे आइपीएल मैच में ही देखा क्योंकि वह वीडियोकाल भी नहीं करता था क्योंकि उसे सामने देख मैं रोने लगती थी। फोन पर भी बात होती तो जैसे ही मैं रोती वह फोन काट देता। फिर थोड़ी देर बाद फोन करता और समझाता कि आप रोती हो तो मुझे भी रोना आता है। वे बताती हैं, यदि वह हमारे साथ रहता तो उसका गुजर कैसे होता। अच्छा हुआ चला गया, आज कुछ बन तो गया है। हम कहीं भी जाते हैं तो लोग कहते हैं आप कुमार कार्तिकेय की मम्मी हैं। यह सुनकर बीते नौ सालों की तकलीफ दूर हो जाती है। मां ने बनाई भिंडी की सब्जी और सेवई

कुमार कार्तिकेय ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर पूरा परिवार मेरी अगवानी को पहुंचा। कुछ पुराने दोस्त भी थे। यह देखकर बहुत खुशी हुई। मैं भी थोड़ा भावुक हो गया था, लेकिन फिर पहले खुद की भावनाओं पर काबू किया और फिर स्वजन को संभाला। घर पहुंचा तो मां ने मेरी पसंद की भिंडी की सब्जी और सेवई बनाई थी। सालों बाद मां के हाथ का खाना खाया। खुशी है कि कुछ बनने के बाद घर लौटा, लेकिन अभी भारतीय टीम में जगह बनाना बाकी है। मध्य प्रदेश टीम का शिविर प्रारंभ हो चुका है और मैं अनुमति लेकर आया हूं। आठ अगस्त को वापस लौटूंगा, मगर तब तक परिवार के साथ समय बिताऊंगा।
फैक्ट्री में भी किया काम :

कुमार कार्तिकेय जब छोटे थे तो पिता के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि स्तरीय किट दिला सकें। जब कुमार दिल्ली में रहने गए तो अपना खर्च उठाने के लिए उन्होंने फैक्ट्री में मजदूरी तक की। वे दिन में अभ्यास करते थे और रात में काम। मगर कभी भी स्वजन को यह जानकारी नहीं दी। मजदूरी करने के बाद कई किमी पैदल चलकर अभ्यास के लिए जाते थे। इससे बस किराए के पैसे बचते थे, जिससे वे बिस्कुट खा लेते थे।

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