नई दिल्ली. भारत को कॉमनवेल्थ गेम्स के छठे दिन वेटलिफ्टिंग में पहला मेडल मिला. लवप्रीत सिंह ने 109 किलोग्राम वेट कैटेगरी में कांस्य पदक जीता. इसके अलावा बॉक्सिंग में भी दो पदक पक्के हुए. एक महिला वर्ग में नीतू घंघास ने, तो दूसरा मेंस कैटेगरी में मोहम्मद हसमुद्दीन ने पक्का किया. नीतू महिलाओं के 48 किलो भार वर्ग के सेमीफाइनल में पहुंचने में सफल रही. इस तरह उन्होंने कम से कम ब्रॉन्ज मेडल तो पक्का कर लिया. उन्होंने क्वार्टरफाइनल में उत्तरी आयरलैंड की मुक्केबाज निकोल क्लाइड को जैसे ही हराया, उनके पिता जय भगवान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वो फौरन बेटी की इस खुशी का जश्न मनाने के लिए मिठाई लेने निकल पड़े.
हरियाणा के भिवानी जिले के धनाना गांव में पैदा हुई नीतू के लिए बर्मिंघम तक का सफर कांटों भरा रहा है. पिता खुद मुक्केबाज बनना चाहते थे. लेकिन, जब उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ, तो बेटी के जरिए इसे साकार करने के मिशन में जुट गए. बेटी को मुक्केबाज बनाने के लिए उन्होंने हरियाणा विधानसभा में अपनी नौकरी तक दांव पर लगा दी. लंबे वक्त तक बिना वेतन के छुट्टी पर रहने के कारण उनके खिलाफ विभागीय जांच चल रही है. उन्हें सालों से वेतन नहीं मिला है. लेकिन, जब बेटी का पहले ही कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल पक्का हुआ, तो इसकी खुशी मनानी तो बनती ही थी.
हमारा घऱ तो नीतू ही चलाती है: पिता
पिता जय भगवान ने कॉमनवेल्थ गेम्स में नीतू का पदक पक्का होने पर इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘हमारा घर तो नीतू ही चलाती है, मैं तो बस उसके इंडिया के लिए मेडल जीतने के सपने को सपोर्ट करता हूं. उसे किसी भी प्रतियोगिता में जीतते देखना, मेरे काम करने जैसा है. इसलिए मैंने उसे सपोर्ट करने के लिए अपने काम से इतनी छुट्टी ली. मैं उसे देखने के लिए भले ही बर्मिंघम नहीं जा पाया लेकिन हमारी प्रार्थना उसके साथ है. मुझे उम्मीद है कि वो जरूर गोल्ड मेडल जीतेगी.’
नीतू को मुक्केबाज बनाने के लिए परिवार का बड़ा संघर्ष
नीतू को मुक्केबाज बनने के लिए भिवानी के उसी बॉक्सिंग क्लब में जाना होता था, जहां से ओलंपिन में पदक जीतने वाले बॉक्सर विजेंदर सिंह निकले थे. इसके लिए उन्हें रोज 20 किलोमीटर का सफर बस से तय करना होता था. एक तो बस का सफऱ, ऊपर से कोच जगदीश सर की कड़ी ट्रेनिंग. एकबारगी तो नीतू ने भी सब छोड़ने का सोच लिया था. फिर पिता को तब घंटों बॉक्सिंग क्लब के बाहर इंतजार करते देखती तो यकीन होता कि कुछ भी कर सकती हूं. बस, इसी को दिल में बैठाकर नीतू आगे बढ़ती रहीं.
2 साल चोट के कारण बॉक्सिंग रिंग से दूर रहीं थीं
नीतू ने साल 2017 और 2018 में यूथ वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. इसके बाद 2018 में एशियन यूथ बॉक्सिंग में यही कारनामा दोहराया. हालांकि, 2019 में उन्हें कंधे में चोट लग गई थी, जिसकी वजह से वो 2 साल मुक्केबाजी से दूर रहीं. हालांकि, 2021 में चोट से वापसी करते हुए स्ट्रेंड्जा मेमोरियल में गोल्ड मेडल जीता और फिर मैरीकॉम जैसी दिग्गज मुक्केबाज को हराकर कॉमनवेल्थ गेम्स का टिकट कटाया और अब इन खेलों में अपना पहला पदक पक्का कर लिया