बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने के कितने भी दावे किए जा रहे हो, लेकिन हकीकत ये है कि आज भी मेरठ की लड़कियां बाल विवाह करने को मजबूर हैं। बीते दो साल में ऐसी 38 किशोरियां सामने आई हैं जिनके विवाह संस्थाओं ने मौके पर जाकर रुकवाए। कोरोना काल के दौरान आर्थिक परेशानियों के चलते गांव-देहात के साथ ही शहर में भी ऐसे कई केस सामने आएं। इनकी काउंसिलिंग के दौरान खुलासा हुआ कि परिवार के दबाव के चलते ही पढ़ाई छोड़ लडिकयों को कम उम्र में ही शादी के बंधन में बंधना पड़ा। संकट बना बड़ी वजह
काउंसिलिंग के दौरान बेटियों का बाल विवाह कराने वाले कई परिवारों ने स्वीकार किया कि कोरोना काल के दौरान उनके काम बंद हो गए। घर चलाने के साथ ही बेटियों की शादियों की चिंता सता रही थी। बेटियों को पढ़ाने का खर्च वहन करना संभव नहीं हो रहा था। इसके चलते बेटियों के हाथ पीले कराना ही उन्हें ठीक लगा।
किशोर भी हैं शामिल
कम उम्र में विवाह करने के लिए कम उम्र की लड़कियां ही नहीं बल्कि लड़के भी मजबूर हैं। कोरोना काल में ऐसे कई किशोरों के भी विवाह रुकवाए गए जिनकी उम्र 21 साल से कम थी। ऐसे लड़कों ने बताया कि परिवार के दबाव के चलते ही उन्हें बात माननी पड़ी।
होती है परेशानी
क्लीनिकल काउंसलर डॉ. विभा नागर ने बताया कि आज भी समाज में जागरूकता का अभाव है। गांव-देहात के अलावा शहरों में लोगों की संकीर्ण मानिसकता और इज्जत के नाम पर लड़िकयों की शादी पूरी उम्र से पहले ही कराने का प्रयास किया जाता है। इसका असर उनके मानिसक और शारीरिक विकास पर पड़ता है। कम उम्र में मां बनने की वजह से लड़कियों को कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।