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समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होगी: जीएमएफ व एसकेपीसमान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होगी: जीएमएफ व एसकेपी « The News Express

समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होगी: जीएमएफ व एसकेपीसमान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होगी: जीएमएफ व एसकेपी

 

ग्लोबल मिडास फाउंडेशन (जीएमएफ) नामक एक सामाजिक संगठन और दिल्ली स्थित साड्डा खिरदा पंजाब (एसकेपी) ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लिए सुझाव आमंत्रित करने हेतु जारी सार्वजनिक नोटिस के संदर्भ में भारत के विधि आयोग को अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किए हैं। जीएमएफ व एसकेपी का मानना है कि समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित होगी और उन्होंने इसके निहितार्थों के बारे में जागरूकता फैलाने में अपना पूरा समर्थन दिया है। राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में शांति, सद्भाव और सभी के हितों की रक्षा करना शामिल है।

अपने तीसरे वर्ष में चल रहे दोनों संगठन, अपनी विभिन्न पहलों के माध्यम से पूरे भारत में 3 लाख से अधिक लोगों और एनआरआई के साथ जुड़े हुए हैं। जीएमएफ और एसकेपी सामाजिक व जन कल्याण कार्यों के लिए दिल्ली, पंजाब सहित संपूर्ण भारत में सक्रिय रूप से जुटे हैं। ये बाजार कल्याण संघों, निवासी कल्याण संघों, गुरुद्वारा/मंदिर समितियों और धार्मिक संगठनों, स्कूलों-कॉलेजों, धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों, प्रतिष्ठित सामाजिक और सार्वजनिक संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं।

सरदार इंदरप्रीत सिंह ने कहा कि समान नागरिक संहिता के मामले में, जीएमएफ और एसकेपी ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के साथ अपना समन्वय बढ़ाया है। इनका मानना है कि आम जनता को यूसीसी के दिशानिर्देश बताने होंगे और उन्हें निष्पक्ष सार्वजनिक राय बनाने में उन्हें साथ में लेना होगा।

दिल्ली/पंजाब और देश के अन्य हिस्सों में आयोजित चर्चाओं, वेबिनार, बैठकों, प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि के आधार पर मिले विचारों, सुझावों, फीडबैक और चिंताओं के आधार पर जीएमएफ और एसकेपी का निष्कर्ष यह है कि जब तक यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसौदा उपलब्ध नहीं होता है, तब तक इसका विरोध करना उचित नहीं होगा। विशेष रूप से सिख समुदाय के लिए जो कि अल्पसंख्यकों का हिस्सा हैं। सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों आदि पर इसके कानूनी निहितार्थों पहलुओं को देखना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, कई राज्य सरकारें पहले से ही इंटरफेथ संगठनों और अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों के समूह के साथ समन्वय में हैं और राज्य यूसीसीसी ड्राफ्ट प्रस्तुत करने के कगार पर हैं, इसलिए ड्राफ्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने के बाद इसकी सावधानीपूर्वक समीक्षा और मूल्यांकन करना आवश्यक है।

ग्लोबल मिडास फाउंडेशन और साड्डा खिरदा पंजाब फेसबुक पेज पर ऑनलाइन और हैल्पलाइन नंबर के माध्यम से पूरे भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पंथ और संगत से प्रतिक्रिया, सुझाव, चिंताएं आमंत्रित की जाती हैं।

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