सच्चे हृदय की करुण पुकार भगवान बहुत जल्दी सुनते हैं। भगवान श्रीकृष्ण उस समय द्वारका में थे, वहां से वे तुरंत दौड़े आये और धर्म रूप से द्रौपदी के वस्त्रों में छिपकर उनकी लाज बचायी। भगवान की कृपा से द्रौपदी की साड़ी अनन्तगुना बढ़ गयी। देवी द्रौपदी पांचाल नरेश राजा द्रुपद की अयोनिजा पुत्री थी। इनकी उत्पत्ति यज्ञवेदी से हुई थी। इनका रूप लावण्य अनुपम था। इनके जैसी सुंदरी उस समय पृथ्वी भर में न थी।
इनके शरीर से तुरंत खिले कमल की सी गंध निकलकर एक कोस तक फैल जाती थी। इनके जन्म के समय आकाशवाणी ने कहा था कि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए क्षत्रियों के संहार के उद्देश्य से इस रमणीरत्न का जन्म हुआ है। इसके कारण कौरवों को बड़ा भय होगा।
कृष्णवर्ण होने के कारण लोग इन्हें कृष्णा कहते थे। पूर्वजन्म में दिये हुए भगवान शंकर के वरदान से इन्हें इस जन्म में पांच पति प्राप्त हुए। अकेले अर्जुन के द्वारा स्वयंवर में जीती जाने पर भी माता कुन्ती की आज्ञा से इन्हें पांचों भाइयों ने ब्याहा था। द्रौपदी उच्च कोटि की पतिव्रता एवं भगवतवक्ता थीं। इनकी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अविचल प्रीति थी। ये उन्हें अपना रक्षक, हितैषी एवं परम आत्मीय तो मानती ही थीं, उनकी सर्वव्यापकता एवं सर्वशक्तिमत्ता में भी इनका पूर्ण विश्वास था।
जब कौरवों की सभा में दुष्ट दुशासन ने इन्हें नग्न करना चाहा और सभासदों में से किसी की हिम्मत न हुई कि इस अमानुषी अत्याचार को रोके, उस समय अपनी लाज बचाने का कोई दूसरा उपाय न देख इन्होंने आतुर होकर भगवान श्रीकृष्ण को पुकारा।