स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों में आंखों में (स्ट्रेन) खिंचाव और कन्वर्जेंस (अभिसरण) कमी की समस्या हो रही है-डॉ स्मिता कपूर

विजन आई सेंटर, नई दिल्ली के स्ट्रबिस्मुस और पीडियाट्रिक ऑप्थेल्मोलॉजी कंसलटेंट डॉ स्मिता कपूर

नई दिल्ली- आज के डिजिटल युग में कई तरह की स्क्रीनों के सामने समय बिताना जिन्दगी का एक जरूरी हिस्सा बन गया है। महामारी के दौरान लोग लॉकडाउन के कारण घर से बाहर नहीं जा सकते थे और लोगों को शारीरिक दूरी बनाए रखनी पड़ती थी, इसलिए समय बिताने के लिए लोग मोबाइल और लैपटॉप से चिपके रहे। बड़ों की तरह बच्चों का स्क्रीन टाइम भी कई कारणों से बढ़ा है। जैसे कि बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, गेमिंग और मनोरंजन के लिए स्क्रीन पर समय बिता रहे हैं, मोबाइल फोन पर दोस्तों के साथ वीडियो बातचीत कर रहे हैं और घंटों सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं। यह बढ़ा हुआ स्क्रीन टाइम आंखों में खिंचाव पैदा कर रहा है, इससे एक आंख की समस्या भी पैदा होती है जिसे कनवरजेंस (अभिसरण) कमी कहा जाता है। इस कारण से हमें जितना हो सके उतना अपने स्क्रीन समय को कम करने का प्रयास करना चाहिए और बच्चों को स्क्रीन का उपयोग करने देते समय पर्याप्त सावधानी भी बरतनी चाहिए।

कनवरजेंस (अभिसरण) कमी आंख में होने वाली एक बीमारी है। इस बीमारी में दोनों आंखें किसी नज़दीक की वस्तु को देखते समय उन्हे पहचान नहीं पाती हैं और साथ में ये आंखे काम नहीं कर पाती है। इस समस्या में जब किसी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की जाती है, तो एक आंख बाहर की ओर निकल सकती है जिससे धुंधला दिख सकता है और दो दो चीज़ें दिखने लग सकती हैं। इससे पढ़ना और ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है और बार-बार सिरदर्द भी होता है। यह स्थिति आमतौर पर बचपन में शुरू होती है लेकिन इससे वयस्क भी प्रभावित हो सकते है। कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से कनवरजेंस (अभिसरण) कमी की समस्या होती है। इन कारणों में कंस्यूशन, न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियां जैसे कि अल्जाइमर, पार्किंसंस या ग्रेव्स बीमारी आदि शामिल है।

 

कनवरजेंस (अभिसरण) कमी और स्क्रीन टाइम में क्या सम्बन्ध है?

अधिकांश स्क्रीन का उपयोग नज़दीक से किया जाता है, इसलिए कनवरजेंस (अभिसरण) कमी की समस्या पैदा होती है। बच्चे विशेष रूप से वयस्कों की तुलना में कम सावधानी बरतते हैं, इसलिए वे आजकल वयस्कों की तुलना में कनवरजेंस (अभिसरण) अक्षमता का ज्यादा अनुभव करते हैं।

कनवरजेंस कमी का लक्षण क्या होता है?
कुछ लक्षण कनवरजेंस अक्षमता का संकेत दे सकते हैं जैसे कि सिरदर्द, तनाव, आंखों की थकान, पढ़ने और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, दो- दो चीज़ें दिखना और आंखों को बार-बार मीचने या रगड़ने की ज़रूरत महसूस करना आदि। वहीं बच्चों में खेल के दौरान ऊपर की ओर फेंकी गई चीजों को पकड़ने में परेशानी महसूस करना, पैर में चलते हुए असमान सतह पर चोट लगना वस्तु की दूरी का अंदाजा न लगा पाने के कारण फर्नीचर या अन्य चीजों से टकराना आदि कनवरजेंस अक्षमता के मुख्य संकेत होते हैं।

 

कनवरजेंस अक्षमता, दूरदृष्टि दोष और शिथिल आंखो की समस्या से अलग होता है?
कनवरजेंस कमी तब होती है जब बायनोकुलर फंक्शन सही से काम नही करता है, जबकि दूरदृष्टि दोष एक रिफ्रेक्टिव (अपवर्तक) समस्या है, इसमें व्यक्ति ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता है और आस-पास की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख सकता है क्योंकि उसमें आईबॉल (नेत्रगोलक) की लंबाई कम होती है या कॉर्निया सपाट होती है। कनवरजेंस (अभिसरण) अपर्याप्तता एंबीलिया या शिथिल आंख की समस्या से भी अलग होती है। शिथिल आंख की समस्या में एक आंख में खराब दिखता है और इसका अगर ज्यादा समय तक इलाज़ न किया जाए तो आंख से दिखना बंद हो सकता है ।

 

कनवरजेंस कमी होने पर पीड़ित को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों पर बारीकी से निगरानी की जानी चाहिए ताकि उनके स्क्रीन टाइम और नॉन-स्क्रीन टाइम के बीच पर्याप्त संतुलन बनाया जा सके।

दूसरा आंखों और स्क्रीन के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखनी चाहिए।
तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण बात बच्चों को एक प्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा निर्धारित कई ओकुलर एक्सरसाइज करनी चाहिए। ध्यान केंद्रित करने वाली एक्सरसाइज पेंसिल पुश-अप है जिसमें बच्चे को पेंसिल की नोक पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा जाता है, जबकि पेंसिल को नाक के ब्रिज के करीब लाया जाता है और जब वस्तु दो दिखने लगती है तो रुका जाता है। दूसरा एक सॉफ्टवेयर आधारित एक्सरसाइज होती है जिसे माता-पिता की देखरेख में घर पर कंप्यूटर पर किया जा सकता है। अगर एक्सरसाइज़ से मदद नहीं मिलती है, तो बच्चे को प्रिज्म का चश्मा दिया जाना चाहिए। नहीं तो उनमें आंखों की मांसपेशियों की सर्जरी की भी ज़रूरत हो सकती है।

किसी भी व्यक्ति में अगर कनवरजेंस समस्या का हल्का सा भी लक्षण नज़र आता है तो उन्हें तुरन्त नेत्र रोग विषेशज्ञ से संपर्क करना चाहिए।

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