घर पर बाँस-पाइप में सब्जियाँ उगाती है ये महिला,देखिये कैसे मशरूम उगाकर करती है लाखो में कमाई!

लॉकडाउन के बाद जब बड़े शहरों से छोटे शहरों की तरफ़ मजदूरों का माइग्रेशन शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात की। इसका शाब्दिक अर्थ है खुद के पैर पर खड़े लोग। मतलब स्वरोजगार। इन दिनों कई ऐसे लोगों की स्टोरी सामने आ रही है, जो आत्मनिर्भर बनने के लिए काफी क्रिएटिविटी दिखाए हैं। इसमें ही एक हैं बिहार के सारण जिले के बरेजा गांव की सुनीता प्रसाद।

सुनीता प्रसाद भले ही मात्र दसवीं पास हों, लेकिन अपने छोटे-छोटे अभिनव प्रयासों से इन्होनें न सिर्फ खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि आज वह गाँव के अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। आज वह मशरूम से लेकर दूसरी सब्जियां घर पर ही उगाती हैं और उसे बेचकर पैसा कमाती हैं। उन्हें अभिनव पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इतना ही नहीं उन्हें डीडी किसान के ‘महिला किसान अवार्ड शो’ में भी शामिल किया गया। तो आइये जानते है आत्मनिभर्र सुनीता की कहानी।

बांस-पाइप में मशरूम से लेकर दूसरी सब्जियां उगाती है!
सुनीता को बचपन से सब्जी उगाने का शौक रहा है। बर्तन टूटने पर वह उसमें मिट्टी डालकर कुछ नई सब्जी उगा देती रहीं। एक दिन कबाड़ी बाले को सामान ले जाते हुए देखा, इस दौरान उन्हें साइकिल पर एक पाइप नजर आया, जिसे उन्होंने खरीद लिया। पाइप को छत पर रख दिया। देखते ही देखते उसमें मिट्टी जम गई। उसके बाद उसमें घास भी निकल आई। यह सब देखकर सुनीता के दिमाग में आईडिया आया कि क्यों ना सब्जियों को पाइप में उगाया जाए!
बस फिर क्या था, सुनीता ने अपने आईडिया पर अमल किया और अपने पति से ठीक बैसा ही एक और पाइप लाने को कहा। जिसके बाद उनके पतिदेव छह फुट लंबा पाइप बाजार से ले आये। और फिर सुनीता ने सुरु कर दिया पाइप में सब्जी उगाना, सबसे पहले सुनीता ने पाइप में कुछ छेद किये इसके बाद मिट्टी डालकर उसमें कुछ पौधे लगा दिए।

धीरे-धीरे सिल-सिला बढ़ा और जो भी पौधा मिलता था, लगा देते थे। यह आइडिया काम कर गया और उपज होने लगी। उसमें बैंगन, भिंडी और गोभी उगने लगा। देखते-देखते उनके क्रिएटिविटी की चर्चा दूर-दूर के गांवों में होने लगी। इसके बाद खर्च बचाने के लिए उन्होंने बांस के साथ भी ऐसा ही प्रयोग किया, इसमें भी वह सफल रहीं। घर सब्जी के अलाबा खूब सारी कमाई!
गोभी देख तो किसान विज्ञान केंद्र की एक अधिकारी अचरज में पड़ गईं। उन्हीं की सलाह पर इसकी प्रदर्शनी लगाई और ‘किसान अभिनव सम्मान’ जीत लिया। सुनीता का कहना है कि आबादी बढ़ रही है। जमीन घट रही है। खाने के लिए तो सब्जी चाहिए। घर में सीमेंट और मार्बल लग रहे है।

अभी नहीं सोचेंगे तो आगे क्या होगा?
उन्होंने कहा कि वर्टिकल खेती शुद्ध जैविक खेती है। लोग घर के किसी भी हिस्से में इसे कर सकते हैं। इससे हर आदमी कम से कम अपने खाने लायक सब्जी तो उपजा ही सकता है। वर्टिकल खेती से उपजे सब्जी से लोगों का स्वास्थ्य भी बढ़िया रहेगा और पैसे भी बचेंगे।

सुनीता के परिवार का आय का मुख्य स्त्रोत मशरूम है। इसके बारे में वह कहती हैं, “पहले खेती बढ़िया नहीं थी। हम सोचते थे कि आखिर क्या किया जाए। पॉल्ट्री फार्म खोला, लेकिन घाटा हो गया। इसके बाद मशरूम लगाया गया। इसके बाद वह पूसा स्थित कृषि विश्वविद्यालय से खेती की ट्रेनिंग लीं। और साइंटिफिक तरीके से खेती करना शुरू कीं तो पैदावर अच्छी होने लगी। अब उनकी अच्छी आमदनी हो रही है। सुनीता ओएस्टर मशरूम उगाती हैं। उन्हें शादी और पार्टी के लिए ऑर्डर मिलने लगे हैं। जो मशरूम बच जाता है, उसे ड्रायर से सुखाकर डीप फ्रीजर में रख देती हैं। इतना ही पैकिंग कर दुकानों को भेजती हैं। सुनीता और उनका परिवार करीब पांच साल से मशरूम की खेती कर रहा है। इससे परिवार को साल में दो से ढाई लाख रुपए की अतरिक्त आमदनी हो जाती है।

महिलाओ को देती है ट्रेनिंग!
सुनीता प्रसाद महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई सारे कार्य करती है, जिसमे महिलाओ को खेती के प्रति जागरूक करना और उन्हें शशक्त बनाने जैसे कई कार्य शामिल है। सुनीता अबतक करीब 100 महिलाओं को मशरूम और उससे जुडी खेती की ट्रेनिंग दे चुकी है। उन्हें बताया कि कोई भी ऐसी सब्जी नहीं है कि जो 200 में रुपए बिके। सुनीता ने उन्हें खाने से लेकर इसे उपजाने की जानकारी दी। उन्हें मशरूम की खीर, अचार, सब्जी, पकौड़े बनाकर खिलाये। अब तो ऐसी स्थिति है को घर में कोई भी मेहमान आते हैं तो उन्हें मशरूम ही खिलाया जाता है।

बाकई सुनीता जैसी महिलाएं ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सच्चे रोल मॉडल हैं। देश को जरूरत है कि महिलायें आगे आकर अधिक से अधिक संख्या में आत्मनिर्भर बने। इससे परिवार की आमदनी तो बढ़ेगी ही साथ ही देश दुनिया से कुछ नया सीखने को भी मिलेगा। जरूरत है तो बस सुनीता जैसी महिलाओ से प्रेरणा लेकर कुछ सीखने और अमल करने की।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *