सावन माह जिस तरह से भगवान शंकर की भक्ति के लिए प्रसिद्ध है उसी तरह नागों के लिए भी प्रसिद्ध है। शिव पुत्री नर्मदा के तट से नागों का इतिहास भी जुड़ा है। नागराज वासुकी सहित अन्य नाग कुलों की सर्वप्रिय बहन मां नर्मदा ही हैं। नर्मदा के तट पर जहां काल सर्प दोष का पूजन किया जाता है वहीं नागपंचमी का विशेष तौर पर पूजन होता है। ग्वारीघाट और तिलवारा के नाग मंदिरों में नागपंचमी को लोग विशेष तौर पर पूजन करने पहुंचते हैं। ब्रह्मा जी के वरदान के अनुसार राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने यज्ञ में सर्पों के महाविनाश की योजना बनाई लेकिन ठीक पंचमी तिथि पर ही आस्तिक मुनि ने आकर सर्पों के महाविनाश को रोक दिया जिसके चलते सर्पों व नागों को यह नाग पंचमी तिथि अति प्रिय है। इस दिन नागों की विशेष पूजा व भगवान शिव की उपासना करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों का निवारण होता है। इस दिन नागों के12 कुलों या 8कुलों या 5 कुलों का पूजा करने पर नागदंश का भय समाप्त हो जाता है।
कालसर्प दोष 12 प्रकार के होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिन कालसर्प दोष समाप्त हो जाता है। यदि यह पूजा मां नर्मदा तट के किनारे की जाती है तो सर्वाधिक श्रेयस्कर है। नागों ने नर्मदा को अपनी बहन माना है इसलिए नर्मदा जी का यह मंत्र ‘नर्मदाय नम: प्रात:, नर्मदाय नम:निशि, नमोस्तु नर्मदे नम:, त्राहिमाम् विषसर्पत:” पढ़ने से सर्प विष से भी बचा जा सकता है। नर्मदा प्राकट्योत्सव के दिन यदि चांदी के नाग-नागिन प्रवाहित कर दिया जाए तो कालसर्प योग से मुक्ति मिल जाती है। मंत्र है -ऊं कुरुकुल्य हुं फट स्वाहा। कालसर्प का संबंध राहू-केतु से है। इसका उल्लेख स्कंदपुराण, विष्णु पुराण, वामन पुराण, शिव पुराण, नर्मदा पुराण, भविष्योत्तर पुराण, ब्रह्मांड पुराण आदि में मिलता है।
ऐसा है नागों का इतिहास
इतिहासविद् डा. आनंद सिंह राणा के अनुसार भारत में नागवंशियों के राज्य और नाम नागपुर, नागदाह, अनंतनाग, शेषनाग, नागालैंड जैसे सैकड़ों नाम नाग पर ही हैं। हिम युग के समय कश्मीर बर्फ से आच्छादित और पिघल रहा था तभी ऋषि कश्यप ने सती के साथ मिलकर एक राक्षस को पराजित कर दिया था और कश्मीर पर कश्यप ने अपना राज्य आरंभ किया। दो पत्नियों कद्रु और वनिता में से कद्रु ने पुत्रों के रूप में हजारों पुत्रों का आशीर्वाद मांगा और फलीभूत हुआ। वो सर्प मानव के रूप में थे। उनमें अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोट्क (कश्मीर में कर्कोट वंश इन्हीं का द्योतक है), पिंगला, अनंत (शेष नाग) के अनंत सिर हैं और सृष्टि के विनाश के समय शिव के आशीर्वाद से वही शेष रहेगा इसलिए शेषनाग कहा जाता है। जब गरुड़ सभी नागों का वध कर रहे थे तब वासुकी ने शेषनाग को यह सलाह दी और वासुकी स्वयं महादेव की सेवा में चले गए। इन्हीं नागों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग पूजा आरंभ की थी।
भगवान शिव के 114 चक्रों को जागृत करने में नागराज वासुकी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। नागराज वासुकी कुल के नाग मां नर्मदा के पास ही रहते हैं। महान गोंडवाना साम्राज्य के संस्थापक जादोराय (यदु राय) नागवंशी ही थे। यह प्रचलित है कि गढ़ा के कटंगा में सकतू नाम का गोंड रहता था। जिनके पुत्र धारूशाह थे । इन्हीं धारूशाह का पौत्र जादोराय थे जिन्होंने गढ़ा में गोंड राज्य की नींव रखी थी। उनका विवाह नागदेव की कन्या रत्नावली से हुआ था। दमोह के सिलापरी में उनके वंशजों के पास जो वंशावली है उसमें जादोराय ही वंश का मूल पुस्र्ष माना गया है। बालाघाट में भी नागवंशियों का साम्राज्य था। प्राचीन काल में और गोंड शासन में नागवंशियों को विशेष महत्व दिया जाता था। क्योंकि युद्ध के समय यही नागवंशी सर्प युक्त तीरों को उपलब्ध कराते थे जो दुश्मनों पर हमला करने के काम आते थे। मार्कण्डेय धाम बाधाओं की शांति के लिए प्रसिद्ध
पंडित विचित्र महाराज बताते हैं कि तिलवारा पुल के पार नर्मदा मार्कण्डेय धाम ना केवल मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि है बल्कि कालसर्प योग, नारायण नागबली, मंगल दोष, पितृ दोष जैसे दुर्भाग्य कारी बाधाओं की शांति के लिए प्रसिद्ध है। नर्मदा के दक्षिण तट को विशेष तौर पर नागों का क्षेत्र माना जाता है। अगर कुंडली में ग्रह आपके अनुकूल हैं तो आपके जीवन में प्रगति में सहायक होते हैं और अगर यह विपरीत प्रभाव देने लगें तो आपके जीवन को नर्क बना देते हैं। भगवान महाकाल को अति प्रिय सावन मास में अगर कोई भक्त भगवान की सच्चे मन से उपासना करता है तो मानस में कहा गया है कि- भावी मैट सके त्रिपुरारी अर्थात ब्रह्मा के विधान को भी अगर कोई बदल सकता है तो वह भगवान शिव ही है जो सहज ही प्रसन्न् हो जाते हैं और बड़ी ही सरलता से कृपा कर देते हैं।