Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wp-plugin-mojo domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home4/twheeenr/public_html/wp-includes/functions.php on line 6114
दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिला देखिये कैसे बन गई बॉडी बिल्डर और जीत लिया Gold « The News Express

दिहाड़ी मजदूरी करने वाली महिला देखिये कैसे बन गई बॉडी बिल्डर और जीत लिया Gold

 

दिहाड़ी मजदूरी कमाने वाली एक औरत जो ईंटें ढोती थी, पत्थर उठाती थी, रेत साफ करती थी, सीमेंट की बोरियां इमारतों की छतों तक पहुंचाती है.जो किसी भी काम में पुरूष मजदूर से कम नहीं होती. पर जब बात दिहाड़ी की हो तो वो कम आंकी जाती है, जब बात काम देने की हो तो उसकी योग्यता कम पड़ जाती है, जब बात एक दिन की छुट्टी की हो तो बहानेबाजी कहकर टाल दिया जाता है।

हमारे आसपास बनती इमारतों में जाने कितनी ही दिहाड़ी महिला मजदूर काम करती हैं पर क्या हम कभी उनके साहस, हिम्मत, ताकत के बारे में सोच पाते हैं? अगर नहीं सोच रहे हैं तो शायद इस कहानी को जानने के बाद अब आप सोचना शुरू कर दें! ये कहानी एक ऐसी दिहाड़ी महिला मजदूर की है जिसने अपने बच्चों की परवरिश की खातिर फावड़ा भी उठाया और भारी भरकम डम्बल भी. जिसने इमारतों में ईंटे भी लगाईं और बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में गोल्ड भी जीता. आइए एस संगीता से मिलते हैं

एस संगीता, अब दक्षिण भारत के बॉडीबिल्डिंग क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है. बॉडीबिल्डिंग की फील्ड आमतौर पर मर्दों की मानी जाती है. जो महिलाएं इस क्षेत्र में हैं, वे चुनौतियों से लंबा युद्ध करके यहां तक पहुंची है. एस संगीता भी उन्ही में से एक है. कुछ लोगों के लिए बॉडीबिल्डिंग पैशन रहा पर संगीता के लिए अपने बच्चों को अच्छी जिंदगी देने का एक जरिया.

35 साल की संगीता दो बच्चों की मां हैं. उनके परिवार में कोई भी नहीं जिनसे जिम की शक्ल भी देखी हो. असल में इतने पैसे ही नहीं थे कि वे अपने सेहत बनाने पर ध्यान देते. संगीता दिहाड़ी महिला मजदूर थी. जिन दिन काम मिल जाए उस दिन घर में अनाज आ जाता वरना कई रातें भूखें ही गुजारनी होती. संगीता दिहाड़ी काम में उतनी ही मेहनत करती थी जिनती कि एक पुरूष लेकिन जहां बाकियों को काम के 300 रुपए मिलते वहीं संगीता को 200 रुपए की दिहाड़ी से काम चलाना पड़ता.

बहरहाल, एक आम मजदूर का परिवार जैसा होता है संगीता का परिवार भी वैसा ही था. एक पति दो प्यारे बच्चे, जो सरकारी स्कूल में तालीम ले रहे थे. संगीता अपने पति के साथ कंस्ट्रेक्शन वर्कर के तौर पर काम कर रही थी. पर कुछ साल पहले पति का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया और वो बच्चों के साथ अकेली रह गई. इस दुख के बाद भी उसने मजदूरी जारी रखी ताकि बच्चों का पालन पोषण होता रहे पर अब घर में केवल 200 रुपए आ रहे थे और ये काफी नहीं थे.
संगीता ने कंस्ट्रेक्शन फील्ड पर पहले की तुलना में ज्यादा काम करना शुरू किया. औरों के मुकाबले ज्यादा वजन उठाया. लोग उसकी ताकत देखकर हैरान थे और ठेकेदार को मजबूर होकर संगीता की दिहाड़ी बढ़ानी पड़ी. इससे घर के हालात तो सम्हल गए पर चुनौतियां कम नहीं हुईं. इस बीच संगीता को लोगों ने टोकना शुरू किया. लोग उसे मजाक में बॉडी बिल्डर कहने लगे.

शुरू में तो ये मजाक ही था पर बाद में संगीता ने जानने की कोशिश की कि आखिर बॉडी बिल्डर करते क्या हैं? अपने एक इंटरव्यू में संगीता ने बताया कि उसके बच्चों ने स्मार्टफोन के जरिए बताया कि बॉडी बिल्डर क्या करते हैं? मैंने देखा कि वो वजन उठाते हैं, बहुत सारा वजन लेकिन उनका तरीका बहुत अलग है. मैंने भी उन्हें कॉपी करना शुरू किया.

यूट्यूब पर वीडियो देखकर घर में वर्कआउट शुरू किया. जब कंस्ट्रेक्शन फील्ड पर काम करती तब भी ईंटें पहले की तरह नहीं उठाती. बल्कि हर चीज में बॉडी पॉश्चर का ध्यान रखने लगी. स्ट्रैंथ बढ़ाने के लिए ईंटों और लकड़ियों से घर में ही होम जिम बना लिया. इसके बाद काम के दौरान और घर आने के बाद भी वर्कआउट जारी रखा. किसी ने बताया कि इस क्षेत्र में काम करके पैसे भी कमाएं जा सकते हैं, इसलिए मैंने सोचा कि जब बच्चों की खातिर वजन उठाना ही है तो सलीके से उठाया जाए.

500 रुपए में मिला पौष्टिक आहार

करने मिला. यहां ट्रेनर ने मुझे बताया कि केवल वर्कआउट से काम नहीं चलेगा. मुझे सेहतमंद खाना खाने की भी जरूरत है. उसने प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन के बारे में समझाया और बहुत से प्रोडेक्ट भी बताएं पर ये सब मेरे लिए मुश्किल था. इसलिए मैंने घर की क्यारी में ही सब्जियां उगाना शुरू किया. घर पर पनीर बनाया, दाले खाना शुरू किया. ये खाना मैं अपने बच्चों को भी खिलाती.

केवल 500 रुपए में ही मुझे महीनेभर की कैलोरी मिल जाती थी. संगीता ने एक साल की मेहनत के बाद प्रतियोगिता में शामिल होना शुरू किया. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में संगीता ने बताया कि ये सब इतना आसान नहीं था, जितनी आसानी से कह दिया जा रहा है. लोग मुझे ताना मारते थे! कहते थे आदमी बनने की कोशिश कर रही हूं. कुछ कहते थे पति के जाने के बाद मनमानी कर रही हूं पर किसी ने ये नहीं सोचा कि अगर मैं ये ना करूं तो मेरे बच्चों का क्या होगा? बॉडीबिल्डिंग के क्षेत्र में भी पुरूषों ने मुझे बहुत वक्त तक स्वीकार नहीं किया पर मैंने हार नहीं मानी.

11 जनवरी 2022 को इंडियन फिटनेस फेडेरेशन द्वारा आयोजित की गई दक्षिण भारतीय बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में संगीता ने हिस्सा लिया और वहां देश की नामी महिला बॉ​डी बिल्डरों से आगे निकलतते हुए पहली ही बार में गोल्ड मैडल हासिल किया. मुझे अवार्ड मिला, सम्मान मिला और पैसे भी मिले. अब लोग मुझसे कोचिंग लेना चाहते हैं. मुझे उम्मीद है कि अब मेरे बच्चों को अच्छी परवरिश मिल सकेगी.

संगीता अपने एक इंटरव्यू में कहती हैं कि जब कोई महिला पुरूषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में कदम रखती है तो उनका ऐसा महसूस होता है कि शायद हम वर्चस्व छीनने आए हैं जबकि ऐसा है नहीं. मैंने पूरी जिंदगी वजन उठाया है पर तब मुझे नहीं पता था कि वजन उठाने का एक क्षेत्र ये भी है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *